उपराष्ट्रपति का बड़ा बयान: कोचिंग नहीं, ‘पोचिंग सेंटर’ हैं — शिक्षा व्यवस्था पर सीधा हमला!

देशभर में तेजी से फैलते कोचिंग कल्चर को लेकर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक बड़ा और साहसिक बयान दिया है। राजस्थान के कोटा में आयोजित ट्रिपल आईटी के चौथे दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे उपराष्ट्रपति ने कहा कि कोचिंग सेंटर अब बच्चों के भविष्य को

EDITED BY: Kamlesh Sharma

UPDATED: Thursday, July 17, 2025

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देशभर में तेजी से फैलते कोचिंग कल्चर को लेकर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने एक बड़ा और साहसिक बयान दिया है। राजस्थान के कोटा में आयोजित ट्रिपल आईटी के चौथे दीक्षांत समारोह में बतौर मुख्य अतिथि पहुंचे उपराष्ट्रपति ने कहा कि कोचिंग सेंटर अब बच्चों के भविष्य को संवारने की बजाय उन्हें मानसिक रूप से तोड़ रहे हैं।

उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि ये कोचिंग सेंटर अब कोचिंग नहीं बल्कि पोचिंग सेंटर बन चुके हैं, जो बच्चों की भावनाओं और संभावनाओं की लूट कर रहे हैं।


‘कोचिंग संस्थान बच्चों को बना रहे हैं रोबोट’


उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कोटा को कोचिंग इंडस्ट्री का केंद्र मानते हुए कहा कि आज जहां देखो, वहां कोचिंग सेंटर कुकुरमुत्तों की तरह उग आए हैं। उन्होंने चेतावनी भरे लहजे में कहा कि यह चलन हमारे युवाओं के लिए खतरनाक होता जा रहा है।

उन्होंने कहा, “ये कोचिंग संस्थान प्रतिभाओं के लिए ब्लैक होल बन चुके हैं। बच्चे अपनी पहचान खोकर एक मशीन बनते जा रहे हैं, जो सिर्फ परीक्षा पास करने की प्रक्रिया में उलझे हैं।”


‘शिक्षा के नाम पर व्यापार और मानसिक शोषण’


धनखड़ ने कोचिंग संस्थानों पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा कि ये संस्थान अखबारों और होर्डिंग्स में झूठे प्रचार पर भारी पैसा खर्च कर रहे हैं, जबकि यह पैसा उन गरीब छात्रों की जेब से निकलता है, जो किसी भी तरह अपने सपनों को साकार करने को आतुर होते हैं।

उन्होंने कहा कि शिक्षा को व्यापार और विज्ञापन का माध्यम बनाना दुर्भाग्यपूर्ण है। “हम अपनी शिक्षा को इस तरह कलंकित होते हुए नहीं देख सकते,” उन्होंने दोहराया।

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‘समस्या को पहचानें, समाधान की दिशा में बढ़ें’


उपराष्ट्रपति ने कहा कि कोचिंग कल्चर अब एक गंभीर सामाजिक समस्या का रूप ले चुका है, जिसे अनदेखा नहीं किया जा सकता। उन्होंने सरकार और समाज से अपील की कि वे मिलकर इस समस्या का स्थायी समाधान खोजें।

उनका सुझाव था कि कोचिंग सेंटरों को स्किल डवलपमेंट सेंटरों में बदला जाना चाहिए, ताकि विद्यार्थी जीवन में सिर्फ परीक्षा नहीं बल्कि वास्तविक जीवन की चुनौतियों के लिए भी तैयार हो सकें।


‘डिग्री से ज़्यादा ज़रूरी है क्षमता’


दीक्षांत समारोह में उपस्थित छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि आज के युग में केवल डिग्री प्राप्त कर लेना पर्याप्त नहीं है। उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे इस प्रकार का कार्य करें जिससे वे न केवल आत्मनिर्भर बनें, बल्कि दूसरों को भी रोजगार देने की स्थिति में आएं।

उन्होंने भारत के कई नामचीन उद्यमियों का उदाहरण देते हुए कहा कि शिक्षा का वास्तविक उद्देश्य समाज और देश के लिए उपयोगी बनना होना चाहिए।


कोटा की सराहना, ओम बिरला का उल्लेख


उपराष्ट्रपति ने अपने संबोधन में कोटा की सकारात्मक पहचान की भी प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला के प्रयासों से कोटा को देश और दुनिया में नई पहचान मिली है। कोचिंग कल्चर की आलोचना के बावजूद उन्होंने कोटा की शिक्षा और प्रतिभा के योगदान को नकारा नहीं।


सम्मान और संदेशों से सजी दीक्षांत समारोह की शाम


समारोह में कुल 189 उपाधियाँ प्रदान की गईं, जिनमें दो छात्रों को गोल्ड मेडल भी मिला। उपराष्ट्रपति ने गोल्ड मेडल विजेताओं सहित सभी विद्यार्थियों को शुभकामनाएं दीं और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना की।

समारोह में राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े ने भी विद्यार्थियों को संबोधित किया और कहा कि देश की प्रगति में युवाओं की भूमिका सर्वोपरि है। उन्होंने छात्रों से अपील की कि वे ज्ञान को केवल अपने लिए नहीं, बल्कि समाज के लिए भी उपयोग करें।


पर्यावरण के प्रति भी जताई प्रतिबद्धता


दीक्षांत समारोह के पूर्व राज्यपाल ने पौधारोपण कर पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दिया। यह प्रतीकात्मक कार्य छात्रों के समक्ष एक सकारात्मक उदाहरण प्रस्तुत करता है कि शिक्षा केवल किताबों तक सीमित नहीं है, बल्कि प्रकृति और समाज के प्रति संवेदनशीलता भी उतनी ही आवश्यक है।


प्रमुख हस्तियों की उपस्थिति में हुआ आयोजन


समारोह में मंत्री मदन दिलावर, विधायक हीरालाल नागर, संदीप शर्मा और कल्पना देवी सहित कई प्रमुख जनप्रतिनिधि भी उपस्थित रहे। उपराष्ट्रपति के भाषण ने कोचिंग कल्चर पर देशव्यापी बहस को एक नई दिशा दे दी है। यह बयान न केवल एक विचार है, बल्कि भारत की भावी शिक्षा नीति को आकार देने वाला एक महत्त्वपूर्ण संकेत भी माना जा रहा है।