देश में कोचिंग हब के रूप में पहचाने जाने वाले कोटा से उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शिक्षा जगत को लेकर एक गूंजता हुआ संदेश दिया है। उन्होंने कोचिंग कल्चर को न सिर्फ खतरनाक करार दिया, बल्कि इसे बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और व्यक्तित्व के लिए हानिकारक भी बताया।
कोटा स्थित ट्रिपल आईटी (IIIT) के चौथे दीक्षांत समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत करते हुए उपराष्ट्रपति ने मौजूदा शिक्षा प्रणाली और कोचिंग इंडस्ट्री की भूमिका पर खुलकर अपनी बात रखी।
डिग्री नहीं, हुनर है असली पूंजी
दीक्षांत समारोह में उपराष्ट्रपति धनखड़ ने छात्रों को बधाई देते हुए कहा कि आज की दुनिया में केवल डिग्री का होना पर्याप्त नहीं है। असल ज़रूरत है उस ज्ञान और कौशल की, जिससे आप न केवल खुद की पहचान बना सकें, बल्कि दूसरों को भी रोजगार दे सकें।
उन्होंने कहा कि ऐसे कई उदाहरण हमारे सामने हैं, जहां बिना बड़ी डिग्री के लोग आज लाखों लोगों को रोजगार दे रहे हैं। यह सोच हमें पारंपरिक शिक्षा के ढांचे से आगे बढ़कर नवाचार और उद्यमिता की ओर ले जाती है।
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कोचिंग कल्चर बना रहा रोबोट, खत्म कर रहा रचनात्मकता
उपराष्ट्रपति ने कोचिंग कल्चर पर गंभीर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि देशभर में बढ़ते कोचिंग संस्थान बच्चों को रोबोट बना रहे हैं। उन्होंने कहा, “सीट्स कम हैं और प्रतिस्पर्धा बहुत ज़्यादा। ऐसे में कोचिंग संस्थान बच्चों को सिर्फ रट्टा लगवाने और परीक्षा पास करवाने के लिए तैयार कर रहे हैं। इसमें रचनात्मकता, सोचने की क्षमता और जीवन कौशल कहीं खो जाता है।”
धनखड़ ने यह भी कहा कि यह स्थिति राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) के उद्देश्यों के बिल्कुल विपरीत है। NEP जहां छात्रों के सर्वांगीण विकास की बात करती है, वहीं कोचिंग संस्थाएं केवल चयन और अंकों की होड़ में लगी हैं।
कोचिंग सेंटर नहीं, स्किल सेंटर बनाएं
उपराष्ट्रपति ने अपने भाषण में यह अपील भी की कि कोचिंग संस्थानों को अब अपनी भूमिका पर पुनर्विचार करना चाहिए। उन्होंने कहा, “इन कोचिंग संस्थाओं को अब स्किल सेंटर में बदला जाना चाहिए, जहां छात्रों को जीवनोपयोगी कौशल सिखाए जाएं।
सिर्फ एक परीक्षा को ध्यान में रखकर वर्षों तक तैयारी कराने से युवा मानसिक रूप से थक जाते हैं और जीवन के अन्य क्षेत्रों में पिछड़ जाते हैं।” उन्होंने कोचिंग को “पोचिंग सेंटर” कहकर कटाक्ष भी किया और कहा कि अगर इसे समय रहते नहीं बदला गया, तो देश की प्रतिभाएं सिर्फ परीक्षा पास करने की मशीन बनकर रह जाएंगी।
कोटा की भूमिका की सराहना
हालांकि कोचिंग कल्चर पर कड़ा रुख अपनाते हुए भी उपराष्ट्रपति ने कोटा की भूमिका की सराहना की। उन्होंने कहा कि लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कोटा को देश और दुनिया में नई पहचान दिलाई है। कोटा न सिर्फ शिक्षा में बल्कि औद्योगिक और सांस्कृतिक रूप से भी आगे बढ़ा है।
छात्रों को मिला मोटिवेशन और मार्गदर्शन
समारोह के दौरान उपराष्ट्रपति ने विद्यार्थियों को यह संदेश दिया कि वे नौकरी मांगने वाले नहीं, बल्कि नौकरी देने वाले बनें। उन्होंने छात्रों को प्रेरित किया कि वे जीवन में बड़ा सोचें और समाज की जरूरतों को पहचान कर समाधान देने का प्रयास करें।
इस मौके पर राज्यपाल हरिभाऊ बागड़े ने भी समारोह को संबोधित किया और छात्रों से आह्वान किया कि वे देश के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएं। उन्होंने कहा कि तकनीकी शिक्षा के माध्यम से भारत को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है।
पौधारोपण से दिया पर्यावरण का संदेश
समारोह की शुरुआत उपराष्ट्रपति और राज्यपाल द्वारा पौधारोपण से हुई, जिसमें उन्होंने पर्यावरण संरक्षण का संदेश दिया। इस अवसर पर राजस्थान के मंत्री मदन दिलावर, विधायक संदीप शर्मा, कल्पना देवी और अन्य गणमान्य अतिथि भी उपस्थित थे।
दीक्षांत समारोह में बंटे पदक और उपाधियां
IIIT कोटा के इस चौथे दीक्षांत समारोह में कुल 189 उपाधियां वितरित की गईं। इनमें दो छात्रों को गोल्ड मेडल प्रदान किया गया। यह समारोह छात्रों के लिए न केवल उपलब्धियों का उत्सव था, बल्कि भविष्य के लिए एक प्रेरणा भी बना।
भारत के शिक्षा जगत में गहराई
उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ का यह वक्तव्य भारत के शिक्षा जगत में गहराई से सोचने की आवश्यकता को रेखांकित करता है। उनकी यह टिप्पणी कोचिंग कल्चर की सीमाओं और उसके दूरगामी प्रभावों को उजागर करती है।
अब वक्त है कि शिक्षा केवल परीक्षा तक सीमित न रहकर छात्रों की असल योग्यता और जीवन के लिए आवश्यक कौशल विकसित करने का माध्यम बने।