सूरज का चमकना है तो सूरज-सा तपना होगा’ — यह पंक्ति केवल शायरी नहीं, बल्कि वास्तविकता बन जाती है जब हम यूपी के मैनपुरी निवासी सूरज तिवारी की कहानी पढ़ते हैं। उनका जीवन उन तमाम लोगों के लिए प्रेरणा है जो कभी-कभी छोटी-छोटी असफलताओं या परिस्थितियों से हार मान लेते हैं।
सूरज ने न सिर्फ कठिनाइयों से लड़ाई लड़ी, बल्कि उन्हें पीछे छोड़ते हुए भारत की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक यूपीएससी को पास कर आईएएस अफसर बनने का सपना भी साकार किया।
जिंदगी ने दी सबसे बड़ी चुनौती, सूरज ने ठानी सबसे बड़ी जीत
सूरज तिवारी का जीवन एक आम मध्यमवर्गीय परिवार से शुरू हुआ। उनके पिता दर्जी का काम करते हैं। प्रारंभिक शिक्षा उन्होंने शिक्षा नगर के महर्षि परशुराम स्कूल से ली, और इसके बाद 2011 में एसबीआरएल इंटर कॉलेज, मैनपुरी से दसवीं और 2014 में संपूर्णानंद इंटर कॉलेज, अरम सराय बेवर से बारहवीं की परीक्षा उत्तीर्ण की।
वे पूरी मेहनत से पढ़ाई में जुटे थे और साल 2017 में बीएससी कर रहे थे। लेकिन उसी साल एक ऐसा हादसा हुआ, जिसने उनके जीवन की दिशा ही बदल दी। दादरी के पास ट्रेन यात्रा के दौरान हुए एक गंभीर रेल हादसे में सूरज ने अपने दोनों पैर, दाहिना हाथ और बाएं हाथ की दो अंगुलियां खो दीं।
यह हादसा शारीरिक ही नहीं, मानसिक और भावनात्मक रूप से भी बेहद भारी था। तीन महीने तक बेड रेस्ट पर रहने के बाद, जब सामान्य व्यक्ति शायद टूट जाता, सूरज ने खुद को संभालना शुरू किया।
हिम्मत की इबारत तीन उंगलियों से लिखी
इतने बड़े हादसे के बाद ज़िंदगी को फिर से पटरी पर लाना आसान नहीं था। लेकिन सूरज ने अपने इरादों को कभी कमजोर नहीं होने दिया। उन्होंने न केवल अपना हौसला बरकरार रखा, बल्कि यह भी तय कर लिया कि उन्हें खुद को इस तरह साबित करना है कि लोग उनकी कमजोरी नहीं, उनका संघर्ष देखें।
शारीरिक रूप से सीमित हो जाने के बावजूद, उन्होंने पढ़ाई जारी रखी। 2018 में उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली में नए सिरे से बीए में दाखिला लिया और 2021 में बीए की पढ़ाई पूरी की। इसके बाद उन्होंने एमए में प्रवेश लिया और यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी।
तैयारी के दौरान उनके पास केवल तीन काम करने वाली उंगलियां थीं, लेकिन सपने पूरे पांच थे। उन्होंने किसी कोचिंग का सहारा नहीं लिया, न ही विशेष व्यवस्था मांगी। अपनी मेहनत, अनुशासन और आत्मबल के दम पर वे लगातार आगे बढ़ते रहे। और जब रिजल्ट आया, तो उन्होंने 971वीं रैंक हासिल कर अपने नाम के साथ ‘आईएएस’ जोड़ लिया।
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समाज के लिए उम्मीद की लौ बन चुके हैं सूरज
सूरज तिवारी की कहानी सिर्फ एक शारीरिक विकलांग व्यक्ति के संघर्ष की नहीं है, बल्कि यह उस इच्छाशक्ति की कहानी है जो सबसे अंधेरे समय में भी रोशनी ढूंढ लेती है। जहां एक ओर लाखों छात्र यूपीएससी की तैयारी के लिए कोचिंग, गाइड और तमाम संसाधनों का सहारा लेते हैं
वहीं सूरज ने विपरीत हालात में भी आत्मबल और अनुशासन के दम पर यह कारनामा कर दिखाया। आज वे सिर्फ एक आईएएस अफसर नहीं हैं, बल्कि लाखों युवाओं के लिए रोल मॉडल बन चुके हैं। उनकी कहानी यह सिखाती है कि परिस्थितियां चाहे जितनी कठिन क्यों न हों, अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी सपना अधूरा नहीं रह सकता।
सूरज के संघर्ष से मिलती है नई दिशा
जब हम अपने चारों ओर देखते हैं, तो बहुत से लोग अपनी परेशानियों को लेकर शिकायत करते मिलते हैं — कभी साधन नहीं हैं, तो कभी समय नहीं। लेकिन सूरज तिवारी की कहानी हर उस शिकायत को खामोश कर देती है।
वे यह साबित करते हैं कि अगर इंसान चाह ले तो जीवन की हर बाधा को पार किया जा सकता है। उनकी यह यात्रा हमें यह भी सिखाती है कि आत्मविश्वास, दृढ़ इच्छाशक्ति और सतत प्रयास से किसी भी सपने को साकार किया जा सकता है — भले ही हालात कितने भी विषम क्यों न हों।
सूरज सिर्फ नाम नहीं, उम्मीद की रौशनी है
सूरज तिवारी जैसे लोगों की वजह से ही समाज में प्रेरणा, उम्मीद और हिम्मत की धाराएं बहती हैं। उनका संघर्ष यह बताता है कि सफलता केवल शरीर से नहीं, मन और मस्तिष्क की दृढ़ता से तय होती है। तीन उंगलियों से लिखा गया उनका यह सपना लाखों दिलों में नया उजाला भरता है — और यही सूरज की असली चमक है।