श्यामा प्रसाद मुखर्जी बलिदान दिवस: CM भजनलाल शर्मा ने दी श्रद्धांजलि, कहा– राष्ट्र के लिए था उनका जीवन समर्पित

भारतीय राजनीति और राष्ट्रवाद के इतिहास में अमिट छाप छोड़ने वाले डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस के अवसर पर राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री भजनलाल शर्मा ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। सोमवार को मुख्यमंत्री निवास पर आयोजित कार्यक्रम में डॉ. मुखर्जी के चित्र पर पुष्प अर्पित

EDITED BY: Kamlesh Sharma

UPDATED: Monday, June 23, 2025

श्यामा प्रसाद मुखर्जी बलिदान दिवस

भारतीय राजनीति और राष्ट्रवाद के इतिहास में अमिट छाप छोड़ने वाले डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान दिवस के अवसर पर राजस्थान के मुख्यमंत्री श्री भजनलाल शर्मा ने उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। सोमवार को मुख्यमंत्री निवास पर आयोजित कार्यक्रम में डॉ. मुखर्जी के चित्र पर पुष्प अर्पित कर मुख्यमंत्री ने उनके योगदान को स्मरण किया और कहा कि डॉ. मुखर्जी का सम्पूर्ण जीवन भारत की एकता, अखंडता और सांस्कृतिक पुनर्जागरण को समर्पित रहा।

मुख्यमंत्री ने कहा कि डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी न केवल एक प्रखर राष्ट्रवादी थे, बल्कि एक दृढ़ निश्चयी विचारक और कर्मयोगी भी थे। उन्होंने भारत की सांस्कृतिक विरासत को पुनर्स्थापित करने और राष्ट्र की एकता को सुदृढ़ करने हेतु अपना समस्त जीवन समर्पित किया। श्री शर्मा ने कहा कि डॉ. मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना कर भारत के राजनीतिक परिदृश्य को एक नई दिशा दी, जिसमें सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, भारतीयता और स्वाभिमान को केंद्र में रखा गया।

शिक्षाविद् से राष्ट्रनायक बनने की यात्रा

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई 1901 को कोलकाता में हुआ था। वे महान शिक्षाविद्, विचारक और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उन्होंने बहुत ही कम उम्र में अकादमिक क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियाँ प्राप्त कीं। मात्र 33 वर्ष की आयु में वे कोलकाता विश्वविद्यालय के कुलपति बने और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में कई क्रांतिकारी सुधार किए हालाँकि शिक्षाविद् के रूप में मिली प्रतिष्ठा उनके सार्वजनिक जीवन की शुरुआत मात्र थी।

उन्होंने राजनीति के क्षेत्र में प्रवेश कर राष्ट्रसेवा को अपना लक्ष्य बनाया। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वे देश के पहले उद्योग मंत्री बने और देश की औद्योगिक नीतियों को दिशा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

कश्मीर मुद्दे पर निर्णायक भूमिका और बलिदान

डॉ. मुखर्जी का सबसे उल्लेखनीय योगदान जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में रहा। उस समय जम्मू-कश्मीर में ‘एक देश, दो विधान, दो निशान, दो प्रधान’ की व्यवस्था थी, जिसका मुखर्जी ने विरोध किया। वे मानते थे कि भारत एक अखंड राष्ट्र है और इसमें किसी प्रकार का अपवाद नहीं हो सकता।

उन्होंने ‘एक देश में दो विधान नहीं चलेंगे’ का नारा दिया, जो आज भी राष्ट्रवादी विचारधारा का आधार है। 1953 में उन्होंने जम्मू-कश्मीर में परमिट सिस्टम और अलग संविधान के विरोध में सत्याग्रह किया।

केंद्र सरकार द्वारा उन्हें बिना अनुमति के कश्मीर में प्रवेश करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया। हिरासत के दौरान रहस्यमयी परिस्थितियों में 23 जून 1953 को उनकी मृत्यु हो गई। यह बलिदान आज भी देशभक्ति और सिद्धांतों के लिए संघर्ष की मिसाल के रूप में देखा जाता है।

भारतीय जनसंघ की स्थापना और राजनीतिक विरासत

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना की, जो आगे चलकर भारतीय जनता पार्टी के रूप में विकसित हुआ। उन्होंने कांग्रेस की नीतियों के विरुद्ध वैकल्पिक राष्ट्रवादी विचारधारा का मंच तैयार किया।

डॉ. मुखर्जी ने यह विश्वास दिलाया कि भारत की राजनीति केवल सत्ता की राजनीति नहीं, बल्कि सिद्धांतों और संस्कृति के मूल्यों पर आधारित होनी चाहिए। उनकी सोच में भारत के सांस्कृतिक गौरव का पुनरुद्धार, शिक्षा और आर्थिक स्वावलंबन का विशेष स्थान था। उनके द्वारा प्रवर्तित विचार आज भी भारतीय राजनीति और नीति निर्माण में प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं।

मुख्यमंत्री ने बताए डॉ. मुखर्जी के आदर्शों से सीखने योग्य मूल्य

मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने इस अवसर पर कहा कि डॉ. मुखर्जी का जीवन हमें यह सिखाता है कि राष्ट्रहित सर्वोपरि है। उनके विचार, सिद्धांत और बलिदान हमें यह प्रेरणा देते हैं कि किसी भी चुनौती के सामने झुकने की बजाय अपने आदर्शों पर अडिग रहकर कार्य करना चाहिए।

उन्होंने युवाओं से आह्वान किया कि वे डॉ. मुखर्जी के जीवन से प्रेरणा लें और भारत के निर्माण में योगदान दें। मुख्यमंत्री ने कहा, “डॉ. मुखर्जी का सपना एक ऐसा भारत था जो सांस्कृतिक रूप से समृद्ध, सामाजिक रूप से समरस और राजनीतिक रूप से आत्मनिर्भर हो। हमें उनके जीवन से यह शिक्षा मिलती है कि राष्ट्र को केवल आर्थिक दृष्टि से नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों से भी समृद्ध बनाना आवश्यक है।”

श्रद्धांजलि कार्यक्रम में उपस्थित रहे अधिकारी

श्रद्धांजलि सभा में मुख्यमंत्री कार्यालय के वरिष्ठ अधिकारीगण एवं अन्य गणमान्यजन उपस्थित रहे। सभी ने डॉ. मुखर्जी के चित्र पर पुष्प अर्पित कर उन्हें नमन किया और उनके आदर्शों को आत्मसात करने का संकल्प लिया।

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान दिवस न केवल एक श्रद्धांजलि का अवसर है, बल्कि यह आत्मचिंतन और राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के लिए प्रेरणा लेने का भी दिन है। उनके विचार, त्याग और सिद्धांत आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने उनके समय में थे। भारतीय जनमानस उन्हें एक युगपुरुष और राष्ट्र के सच्चे प्रहरी के रूप में सदैव स्मरण करता रहेगा।