छात्रसंघ चुनाव रोकने का पाप किसका? शेखावत ने गहलोत को घेरा, सियासी तकरार तेज

बिहार चुनाव और छात्रसंघ राजनीति को लेकर चल रही सियासत में एक बार फिर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को निशाने पर लिया है। केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री शेखावत ने गहलोत के हालिया बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने गहलोत

EDITED BY: Kamlesh Sharma

UPDATED: Sunday, July 13, 2025

shekhawat-ka-gehlot-par-pratighaat-chhatrasangh-chunav-viwad


बिहार चुनाव और छात्रसंघ राजनीति को लेकर चल रही सियासत में एक बार फिर केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को निशाने पर लिया है। केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री शेखावत ने गहलोत के हालिया बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी है।

उन्होंने गहलोत पर आरोप लगाया कि सत्ता से बाहर होने के बाद ही उन्हें संविधान की याद आती है, जबकि जब सत्ता में होते हैं तो नियमों की अपनी सुविधा के अनुसार व्याख्या करते हैं।


बिहार चुनाव पर गहलोत के बयान का जवाब


अशोक गहलोत द्वारा बिहार में हो रहे चुनावों को लेकर चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठाए जाने के बाद शेखावत ने कहा कि संविधान के तहत निष्पक्ष चुनाव करवाना चुनाव आयोग का दायित्व है। यह चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र का विषय है, जिसमें किसी को भी संदेह करने की आवश्यकता नहीं है।

उन्होंने आरोप लगाया कि इस विषय को राजनीतिक रंग देकर एक बार फिर से गलत नैरेटिव गढ़ने की कोशिश की जा रही है, जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है।


‘सत्ता से बाहर होने पर आता है संविधान याद’


शेखावत ने कहा कि कुछ नेताओं को संविधान और जनहित की बातें तब याद आती हैं जब वे सत्ता से बाहर हो जाते हैं। जब सत्ता में होते हैं, तब वे अपनी सुविधा और राजनीतिक हितों के अनुसार नियमों की व्याख्या करते हैं।

उन्होंने तंज कसते हुए कहा, “ऐसे लोगों को तब संविधान नहीं याद आता जब वे छात्रों के लोकतांत्रिक अधिकारों को कुचलते हैं या चुनावी प्रक्रिया को रोकते हैं।”

यह भी पढ़ें – 


छात्रसंघ चुनावों को लेकर कांग्रेस पर हमला


शेखावत ने राजस्थान में छात्रसंघ चुनावों को लंबे समय तक रोके जाने का मुद्दा भी उठाया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस सरकार ने विधानसभा चुनाव से पहले अपनी हार को टालने के लिए छात्रसंघ चुनावों को रोकने का पाप किया।

उन्होंने सवाल किया कि 13 वर्षों तक पंचायती राज चुनाव नहीं करवाने का फैसला किसका था? जब खुद सत्ता में थे तब संविधान और लोकतंत्र की चिंता क्यों नहीं की गई? उन्होंने कहा, “मैंने पहले ही कहा था कि जिनके घर शीशे के होते हैं, उन्हें दूसरों पर पत्थर नहीं फेंकने चाहिए।

कांग्रेस ने लोकतांत्रिक संस्थाओं और चुनावी प्रक्रियाओं को कमजोर करने का काम किया है। अब जब वे विपक्ष में हैं, तो नियमों और नैतिकता की दुहाई दे रहे हैं।”


जोधपुर की जलापूर्ति पर जताई चिंता


अपने संसदीय क्षेत्र जोधपुर में जल संकट के मसले पर शेखावत ने कहा कि शहर की जलापूर्ति से जुड़ी बड़ी परियोजना में देरी चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि जल जीवन मिशन के तहत चल रही तीसरे फेज की केनाल परियोजना को 2023 में ही पूरा होना था, लेकिन समीक्षा बैठक में सामने आया कि यह दिसंबर 2025 तक पूरी हो पाएगी।

उन्होंने इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि जोधपुर की पानी की समस्या का बड़ा समाधान इसी परियोजना से जुड़ा हुआ है।


जनप्रतिनिधि होने के नाते जिम्मेदारी निभा रहा हूं: शेखावत


शेखावत ने कहा कि जोधपुर की जनता ने उन्हें जो जिम्मेदारी दी है, उसे वे पूरी तरह से निभाने की कोशिश कर रहे हैं। वे जब भी समय मिलता है, स्थानीय लोगों से मिलते हैं, उनकी समस्याएं सुनते हैं और संबंधित विभागों तक समाधान की बात पहुंचाते हैं।

उन्होंने कहा, “एक जनप्रतिनिधि का कर्तव्य होता है कि वह जनता के बीच रहकर उनके मुद्दों को समझे और उनके निवारण के लिए काम करे।”


राजनीतिक हमलों के बीच चुनावी माहौल गरमाया


गहलोत और शेखावत के बीच यह बयानबाजी ऐसे समय पर हो रही है जब राजस्थान में छात्र राजनीति को फिर से बहाल करने की मांग जोर पकड़ रही है। हाल ही में छात्र संगठनों ने आंदोलन कर छात्रसंघ चुनावों की बहाली की मांग की थी।

ऐसे में शेखावत का यह बयान कांग्रेस के उस फैसले की ओर ध्यान खींचता है, जब गहलोत सरकार ने कोविड और अन्य प्रशासनिक कारणों का हवाला देकर छात्रसंघ चुनाव स्थगित कर दिए थे।


संविधान और लोकतंत्र की लड़ाई या राजनीतिक बयानबाजी?


केंद्रीय मंत्री शेखावत की ओर से लगाए गए आरोपों से एक बार फिर यह सवाल उठने लगा है कि क्या राजनीतिक दलों के लिए लोकतंत्र और संविधान सिर्फ सत्ता में आने या जाने का साधन बनकर रह गए हैं? क्या चुनावों को लेकर पारदर्शिता और निष्पक्षता की बातें केवल राजनीति का हिस्सा हैं या इनका कोई ठोस क्रियान्वयन भी है?

फिलहाल तो इतना स्पष्ट है कि राजस्थान की राजनीति में छात्रसंघ चुनाव और युवाओं से जुड़े मुद्दे एक बार फिर केंद्र में आ गए हैं और इन पर सियासत गर्म है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि इन बयानों का असर सिर्फ भाषणों तक सीमित रहता है या वाकई युवाओं को लोकतांत्रिक मंच वापस मिलते हैं।