लोकतंत्र की मांग पर छात्र उग्र: नेताओं के पोस्टर बनाकर किया प्रदर्शन!

राजस्थान में छात्रसंघ चुनाव पर लगी रोक को हटाने की मांग ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया है। छात्र संगठनों ने इस बार विरोध जताने के लिए अनोखा तरीका अपनाया। राजधानी जयपुर स्थित राजस्थान विश्वविद्यालय के बाहर छात्र नेताओं ने भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही पार्टियों

EDITED BY: Kamlesh Sharma

UPDATED: Friday, July 11, 2025

rajasthan-students-demand-democracy-leaders-poster-protest


राजस्थान में छात्रसंघ चुनाव पर लगी रोक को हटाने की मांग ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया है। छात्र संगठनों ने इस बार विरोध जताने के लिए अनोखा तरीका अपनाया। राजधानी जयपुर स्थित राजस्थान विश्वविद्यालय के बाहर छात्र नेताओं ने भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही पार्टियों के बड़े नेताओं के कटआउट लगाकर विरोध प्रदर्शन किया और तख्तियां हाथ में लेकर लोकतांत्रिक अधिकारों की बहाली की मांग की। छात्र नेताओं का कहना है कि छात्रसंघ चुनाव राजनीति की पहली सीढ़ी है, और इसे रोकना लोकतंत्र की जड़ों को काटने जैसा है।


छात्रसंघ चुनाव की बहाली को लेकर फिर भड़की चिंगारी


पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में छात्रसंघ चुनाव पर प्रतिबंध लगाया गया था, जिसे लेकर उस समय भी जमकर विरोध प्रदर्शन हुए थे। अब जब सरकार बदल चुकी है और शिक्षा सत्र की शुरुआत हो गई है, तो छात्रसंघ चुनाव को लेकर एक बार फिर सियासी बहस छिड़ गई है।

छात्रों का कहना है कि सरकारें चाहे कोई भी हो, चुनाव पर लगी रोक को लेकर सिर्फ बहानेबाजी की जा रही है। मौजूदा सरकार ने भी एक साल से अधिक का समय निकाल दिया, लेकिन अब तक इस विषय पर कोई ठोस फैसला नहीं लिया गया है।

यह भी पढ़ें –


छात्रों का आरोप – सरकारें बुनियादी लोकतंत्र से भाग रही हैं


छात्र नेताओं का कहना है कि छात्रसंघ चुनाव ही लोकतंत्र की असली पाठशाला है। यहीं से नेता तैयार होते हैं, जो आगे चलकर मंत्री, सांसद और मुख्यमंत्री बनते हैं। ऐसे में इस लोकतांत्रिक प्रक्रिया पर रोक लगाना युवाओं के अधिकारों से खिलवाड़ है।

राजस्थान विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व पदाधिकारी शुभम रेवाड़ ने कहा कि अगर कुछ छात्र नेताओं ने लिंगदोह कमेटी के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन किया था तो उनके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए, न कि पूरे सिस्टम को बंद कर दिया जाए। उन्होंने कहा, “शरीर के किसी एक हिस्से में तकलीफ होने पर पूरा शरीर नहीं काटा जाता, इलाज किया जाता है।”


नेताओं के कटआउट लगाकर दिया संदेश


राजस्थान विश्वविद्यालय के बाहर प्रदर्शन के दौरान अनूठा नज़ारा देखने को मिला। छात्रों ने अशोक गहलोत, गजेंद्र सिंह शेखावत, हनुमान बेनीवाल, हरीश चौधरी, मुकेश भाकर, रामनिवास गावड़िया, प्रताप सिंह खाचरियावास, कालीचरण सराफ, राजेंद्र राठौड़ सहित करीब 18 प्रमुख नेताओं के कटआउट लगाए।

इन सभी नेताओं ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत छात्रसंघ से ही की थी। छात्रों ने कटआउट के आगे तख्तियां लेकर बैठकर यह प्रतीकात्मक संदेश दिया कि आज वही छात्र राजनीति का गला घोंट रहे हैं, जिन्होंने इसी मंच से अपने करियर की शुरुआत की थी।


पुलिस और छात्रों में हल्की झड़प, चेताया उग्र आंदोलन का


प्रदर्शनकारियों ने कुलपति सचिवालय तक मार्च करने की कोशिश की, जहां पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की। इसी दौरान छात्रों और पुलिस के बीच हल्की झड़प भी हो गई। हालांकि बाद में हालात सामान्य हो गए।

छात्र नेता शुभम रेवाड़ ने स्पष्ट शब्दों में चेतावनी दी कि अगर सरकार ने अब भी छात्रसंघ चुनाव बहाल नहीं किए, तो जल्द ही बड़े और उग्र आंदोलन की शुरुआत होगी। उन्होंने कहा कि यह सिर्फ प्रतीकात्मक विरोध था, असली लड़ाई अभी बाकी है।


गहलोत की दोहरी भूमिका पर सवाल


पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को लेकर छात्रों में खासा रोष देखने को मिला। दरअसल, गहलोत सरकार ने ही अपने कार्यकाल में छात्रसंघ चुनाव पर रोक लगाई थी। लेकिन अब जबकि वे सत्ता से बाहर हैं, उन्होंने पिछले साल एक बयान में कहा कि चुनाव पर लगी रोक हटनी चाहिए।

छात्रों का सवाल है कि जब गहलोत खुद मुख्यमंत्री थे, तब उन्होंने यह फैसला क्यों नहीं बदला? छात्रों ने गहलोत की इस दोहरी भूमिका को राजनीतिक अवसरवाद करार दिया।


दोनों ही दलों पर दबाव बढ़ा


छात्र नेताओं के इस प्रतिरोध ने न केवल कांग्रेस बल्कि भाजपा सरकार पर भी दबाव बढ़ा दिया है। जहां कांग्रेस ने अपने कार्यकाल में प्रतिबंध लगाया, वहीं मौजूदा भाजपा सरकार ने भी अब तक इसे बहाल करने की कोई पहल नहीं की है। छात्रों का मानना है कि दोनों ही दलों ने छात्र राजनीति को गंभीरता से नहीं लिया और युवाओं को केवल एक राजनीतिक मोहरा समझा है।


लोकतंत्र की पहली सीढ़ी के लिए संघर्ष जारी रहेगा


छात्र नेताओं का कहना है कि यह आंदोलन केवल चुनाव कराने के लिए नहीं है, बल्कि यह युवाओं के आत्मसम्मान, नेतृत्व विकास और लोकतंत्र में हिस्सेदारी का संघर्ष है। जब देश के बड़े नेता खुद छात्रसंघ से निकले हैं, तो आने वाली पीढ़ियों से यह अवसर क्यों छीना जा रहा है?

राजस्थान की राजनीति में छात्र राजनीति हमेशा से अहम भूमिका निभाती रही है। अब देखना होगा कि सरकार छात्रों की इस मांग पर क्या रुख अपनाती है—बहाल करती है लोकतंत्र की पहली सीढ़ी, या एक और बार टाल देती है युवाओं की उम्मीदें।