राजस्थान में एक बड़ा निर्णय लेते हुए राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल (RPCB) ने प्रदेशभर में संचालित हो रहे करीब 5 हजार ईंट-भट्टों को 1 जुलाई 2025 से 31 दिसंबर 2025 तक बंद करने का आदेश जारी किया है। यह निर्णय पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण के मद्देनज़र लिया गया है।
इससे न केवल निर्माण क्षेत्र पर असर पड़ेगा, बल्कि हजारों श्रमिकों के सामने रोजगार का भी संकट खड़ा हो गया है। खासकर भीलवाड़ा जैसे जिलों में, जहां अकेले 250 से अधिक ईंट-भट्टे संचालित होते हैं, स्थानीय और बाहरी श्रमिकों के लिए यह निर्णय झटका साबित हो सकता है।
आरपीसीबी का नया आदेश और संचालन अवधि में बदलाव
राजस्थान स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (RPCB) ने अपने नए आदेश में स्पष्ट किया है कि अब राज्य में ईंट-भट्टों का संचालन वर्षभर नहीं किया जा सकेगा। नई व्यवस्था के अनुसार, हर साल ईंट-भट्टे केवल 1 जनवरी से 30 जून तक ही संचालित किए जा सकेंगे।
पहले यह अवधि नौ माह थी, जिससे भट्टा व्यवसायी और श्रमिकों को अधिक समय तक काम मिल जाता था। लेकिन अब केवल छह माह की संचालन अवधि के चलते न सिर्फ उत्पादन घटेगा बल्कि श्रमिकों की आय पर भी सीधा असर पड़ेगा।
एनजीटी के आदेश के बाद बदला नियम
इस फैसले के पीछे नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) का एक महत्वपूर्ण आदेश भी कारण बना है। 24 जनवरी 2024 को एनजीटी ने समूहों में संचालित हो रहे ईंट-भट्टों को लेकर पर्यावरणीय चिंताओं को देखते हुए सीमित संचालन की सिफारिश की थी।
इसके बाद भट्टा संघों ने भी पर्यावरण संतुलन बनाए रखने के लिए स्वैच्छिक रूप से फायरिंग अवधि कम करने का प्रस्ताव रखा था। इसी क्रम में 22 जनवरी 2025 को आरपीसीबी ने अंतिम रूप से आदेश जारी किया कि अब ईंट-भट्टों का संचालन 30 जून के बाद नहीं किया जाएगा।
प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर सख्ती
नए आदेशों के अनुसार, यदि 1 जुलाई से 31 दिसंबर के बीच कोई भी ईंट-भट्टा संचालन करता पाया गया, तो उसके खिलाफ जुर्माना लगाया जाएगा और सख्त कानूनी कार्रवाई भी की जाएगी।
RPCB के क्षेत्रीय अधिकारी दीपक धनेटवाल ने साफ किया है कि जिले में कोई भी ईंट भट्टा अगर तय मापदंडों के विरुद्ध चलता मिला तो उस पर तत्काल कार्यवाही की जाएगी। आदेश पूरे राजस्थान के लिए प्रभावी होंगे और इसमें किसी तरह की ढील नहीं दी जाएगी।
हजारों श्रमिकों पर संकट
ईंट-भट्टा उद्योग में कार्यरत हजारों श्रमिक, जिनमें उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों से आने वाले प्रवासी मजदूर भी शामिल हैं, इस निर्णय से सीधे प्रभावित होंगे। छह माह तक भट्टों के बंद रहने से न सिर्फ इन श्रमिकों की आजीविका पर संकट आएगा, बल्कि उन्हें वैकल्पिक रोजगार की तलाश भी करनी पड़ेगी।
कुछ भट्टा संचालकों ने आशंका जताई है कि इससे क्षेत्रीय बेरोजगारी में भी इजाफा हो सकता है।
निर्माण कार्य पर भी दिखेगा असर
ईंट-भट्टों के संचालन में लगाई गई इस सख्ती का असर प्रदेश के निर्माण कार्यों पर भी पड़ सकता है। ईंटों की कमी से रियल एस्टेट प्रोजेक्ट्स, सरकारी भवन निर्माण और ग्रामीण विकास योजनाओं की गति धीमी हो सकती है। साथ ही, निर्माण सामग्री की लागत में वृद्धि की संभावना भी जताई जा रही है।
आने वाले समय में स्थिति कैसी रहेगी
हालांकि सरकार और प्रदूषण नियंत्रण मंडल की मंशा पर्यावरणीय संतुलन को बनाए रखने की है, लेकिन इसके सामाजिक और आर्थिक प्रभावों को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। भट्टा संघों द्वारा सरकार से इस अवधि में वैकल्पिक रोजगार की व्यवस्था करने और नीति में कुछ लचीलापन देने की मांग की जा रही है।
संचालन फिर से 1 जनवरी 2026 से शुरू हो सकेगा, लेकिन तब तक यह देखना होगा कि ईंट-भट्टा उद्योग और उससे जुड़े श्रमिक इस बदलाव को कैसे झेलते हैं। राजस्थान में प्रदूषण नियंत्रण के नाम पर लिया गया यह निर्णय निश्चित ही पर्यावरण के लिए सकारात्मक कदम हो सकता है, लेकिन इसके साथ ही यह सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से गंभीर चुनौतियां भी पैदा कर रहा है।
आने वाले महीनों में इसके दूरगामी प्रभाव देखने को मिल सकते हैं। अब यह देखना होगा कि सरकार श्रमिकों और उद्योगों को राहत देने के लिए क्या वैकल्पिक कदम उठाती है।