कोलकाता के एक प्रतिष्ठित लॉ कॉलेज की एक छात्रा की आपबीती ने पूरे देश को सन्न कर दिया है। 24 वर्षीय छात्रा ने जो कुछ झेला, वह न सिर्फ एक अपराध है बल्कि समाज की उस भयावह चुप्पी का आईना भी है जो अपराधियों से ज्यादा डरावनी होती है।
यह घटना किसी को भी भीतर तक हिला सकती है, क्योंकि यह कहानी सिर्फ एक छात्रा की नहीं, बल्कि हमारे शैक्षणिक संस्थानों की सुरक्षा, वहां मौजूद सत्ता के दंभ और हमारी सामाजिक संवेदनहीनता की भी है।
लॉ कॉलेज में पढ़ने आई थी, पर दहशत की शिकार बन गई
एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार, यह छात्रा कोलकाता के एक नामी लॉ कॉलेज में पढ़ाई करने आई थी। लेकिन जिस जगह को उसने ज्ञान का मंदिर समझा, वहीं उसे सबसे भयावह अनुभव का सामना करना पड़ा।
छात्रा ने पुलिस को दिए अपने बयान में बताया कि उसे कॉलेज परिसर में स्थित एक गार्ड रूम में बंद कर दिया गया। वहां तीन युवकों ने उसके खिलाफ साजिश रची, जिनमें से एक ने उसके साथ घिनौना कृत्य किया जबकि बाकी दो चुपचाप तमाशा देखते रहे।
“मैंने कहा मेरा बॉयफ्रेंड है… फिर भी नहीं रुका”
छात्रा ने बताया कि उसने आरोपी को रोका, गिड़गिड़ाई, पैर पकड़े और यह तक कहा कि वह किसी और से प्यार करती है। परंतु वह दरिंदा नहीं रुका। लड़की के मुताबिक, मुख्य आरोपी कॉलेज का पूर्व छात्र है और तृणमूल छात्र परिषद (TMCP) की स्थानीय इकाई से जुड़ा एक “गैर-आधिकारिक नेता” है।
उसके मुताबिक, वह छात्र कॉलेज में ‘राज करता है’ और सब पर हावी रहता है। यह आरोप दर्शाते हैं कि कैसे राजनीतिक दखल ने कॉलेज कैंपस को भय और दबाव का अड्डा बना दिया है।
दो युवक सिर्फ तमाशा देखते रहे
इस पूरी घटना का सबसे डरावना पहलू यह था कि जब छात्रा की अस्मिता कुचली जा रही थी, उस वक्त दो युवक वही खड़े होकर यह सब देख रहे थे। न उन्होंने उस हैवान को रोका, न लड़की की मदद की। यह निष्क्रियता दर्शाती है कि अपराध केवल करने वाला ही दोषी नहीं होता, उसे चुपचाप देखने वाले भी उस पाप में बराबर के भागीदार होते हैं।
राजनीति की छाया में अपराध, इंसाफ की राह मुश्किल
घटना के सामने आने के बाद राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। विपक्ष ने सत्ताधारी पार्टी पर निशाना साधा है, यह कहते हुए कि उनके छात्र संगठन से जुड़े लड़के कैंपस में खुलेआम गुंडागर्दी कर रहे हैं। कॉलेज प्रशासन की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं कि आखिर ऐसी घटनाएं होते समय सुरक्षात्मक कदम क्यों नहीं उठाए जाते?
क्या शिक्षण संस्थान सुरक्षित हैं?
यह घटना हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमारे विश्वविद्यालय और कॉलेज, खासकर लड़कियों के लिए सुरक्षित हैं? क्या किसी संगठन से जुड़ा व्यक्ति इतना ताकतवर हो सकता है कि वह कानून, नैतिकता और इंसानियत सब कुछ कुचल दे?
यह न केवल कानून व्यवस्था पर सवाल है, बल्कि समाज की उस चुप्पी पर भी एक तीखा तमाचा है जो अपराध के समय मौन हो जाती है।
जब हम चुप होते हैं, अपराधी और निडर होता है
इस घटना ने यह साफ कर दिया है कि मौन अपराधियों को बल देता है। जब साथ पढ़ने वाले छात्र चुप रहते हैं, जब सुरक्षा में तैनात गार्ड डरकर भाग जाते हैं, तब अपराधी और भी निडर हो जाता है। इस छात्रा ने जिस साहस से अपनी आपबीती सुनाई, वह हमें चेतावनी देती है कि अब और चुप नहीं रहा जा सकता।
सोशल मीडिया पर उठ रही इंसाफ की मांग
घटना के सामने आते ही सोशल मीडिया पर छात्रा के लिए न्याय की मांग तेजी से उठने लगी है। लोग न केवल आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं, बल्कि कॉलेज प्रशासन और राज्य सरकार से भी कड़ी कार्रवाई की अपेक्षा कर रहे हैं। यह घटना अकेले एक पीड़िता की नहीं, यह उस हर लड़की की कहानी है जो अपने सपनों को लेकर कॉलेज जाती है।
सवाल है — क्या हम उसे वह सुरक्षा और सम्मान दे पा रहे हैं जिसकी वह हकदार है? या फिर हर बार जैसे हादसे को सिर्फ खबर बनाकर भूल जाते हैं? समय आ गया है कि कानून अपना काम करे, लेकिन उससे पहले समाज को अपनी चुप्पी तोड़नी होगी। वरना अगली बार शिकार कोई और होगा — और तमाशा देखने वाले हम ही होंगे।