राजस्थान की सियासत एक बार फिर गर्मा गई है, और इस बार केंद्र में हैं अंता से निलंबित और सजायाफ्ता विधायक कंवरलाल मीणा। हाल ही में कोर्ट से तीन साल की सजा मिलने के बाद उनकी विधायकी चली गई थी, लेकिन अब उन्होंने एक संवैधानिक अधिकार का प्रयोग करते हुए राज्यपाल के समक्ष दया याचिका प्रस्तुत की है।
इस याचिका के सामने आने के बाद राजनीतिक गलियारों में हलचल तेज हो गई है।
दया याचिका के बाद कांग्रेस का हमला, बीजेपी की सफाई
राजभवन में दया याचिका दाखिल होने के बाद कांग्रेस ने तुरंत प्रतिक्रिया दी और भाजपा पर सवाल उठाए। विपक्ष का कहना है कि कानून सबके लिए बराबर होना चाहिए और कोई भी जनप्रतिनिधि अगर दोषी पाया गया है तो उसे सजा भुगतनी चाहिए।
वहीं इस मामले में सरकार के यूडीएच मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने स्थिति को स्पष्ट करने की कोशिश की। कोटा दौरे के दौरान मीडिया से बातचीत में मंत्री खर्रा ने कहा कि किसी भी व्यक्ति को संविधान के तहत राज्यपाल या राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका प्रस्तुत करने का अधिकार प्राप्त है।
उन्होंने कहा कि राज्यपाल इस याचिका पर विधिक सलाह के आधार पर निर्णय लेंगे और यह पूरी प्रक्रिया संविधान के अनुरूप है।
विधि मंत्री ने बताया संवैधानिक अधिकार
इस पूरे घटनाक्रम पर राज्य के विधि मंत्री जोगाराम पटेल ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है। जोधपुर सर्किट हाउस में मीडिया से बातचीत के दौरान उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी भी सजायाफ्ता व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह दया के लिए राज्यपाल या राष्ट्रपति से अनुरोध कर सकता है।
उन्होंने इसे पूरी तरह संवैधानिक प्रक्रिया बताते हुए कहा कि राज्यपाल याचिका की समीक्षा करने के बाद ही कोई निर्णय लेंगे। विधि मंत्री ने कहा कि यदि कंवरलाल मीणा को दी गई सजा को राज्यपाल माफ करते हैं, तो उनकी विधायकी फिर से बहाल की जा सकती है। वहीं अगर दया याचिका अस्वीकार होती है, तो वर्तमान स्थिति यथावत बनी रहेगी।
तीन साल की सजा के बाद खत्म हुई थी विधायकी
गौरतलब है कि अंता से बीजेपी विधायक कंवरलाल मीणा को अदालत ने हाल ही में तीन साल की सजा सुनाई थी, जिसके चलते उनकी विधानसभा सदस्यता स्वतः समाप्त हो गई। संविधान के अनुसार, किसी भी जनप्रतिनिधि को दो साल या उससे अधिक की सजा होने पर उसकी सदस्यता समाप्त हो जाती है।
कंवरलाल मीणा ने इस निर्णय के विरुद्ध संवैधानिक रास्ता अपनाते हुए राज्यपाल से दया की मांग की है। उन्होंने यह याचिका ऐसे समय में दाखिल की है जब राज्य की राजनीति में विपक्ष आक्रामक रुख अपनाए हुए है और भाजपा सरकार पर लगातार हमलावर है।
विधायकी की वापसी की उम्मीद में बीजेपी खेमे की निगाहें
बीजेपी के भीतर भी इस मामले को लेकर अलग-अलग राय हैं। कुछ नेता इस पर खुलकर कुछ नहीं कह रहे, लेकिन अंदरूनी तौर पर उम्मीद जताई जा रही है कि राज्यपाल यदि याचिका स्वीकार कर लेते हैं और सजा में राहत दी जाती है तो कंवरलाल मीणा की विधायकी बहाल हो सकती है।
इससे पार्टी को अंता क्षेत्र में राजनीतिक मजबूती भी मिल सकती है। हालांकि, यह मामला सिर्फ एक विधायक की विधायकी तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके जरिए संविधान की व्याख्या, न्याय प्रक्रिया और दया याचिका की भूमिका पर भी बहस छिड़ गई है।
संवैधानिक प्रक्रिया या राजनीतिक लाभ का प्रयास?
कई जानकार इस पूरे प्रकरण को एक संवेदनशील संवैधानिक प्रक्रिया के रूप में देख रहे हैं, जबकि कुछ इसे राजनीतिक लाभ लेने की रणनीति मान रहे हैं। दया याचिका पर राज्यपाल का निर्णय आने वाले दिनों में न सिर्फ विधायक मीणा के भविष्य को तय करेगा
बल्कि यह भी स्पष्ट करेगा कि क्या वास्तव में न्यायिक दंड से राहत संविधान की भावना के अनुरूप दी जा सकती है या नहीं। राज्यपाल का निर्णय इस दिशा में एक मिसाल के रूप में देखा जाएगा, क्योंकि यह न केवल कानून की व्याख्या करेगा, बल्कि सियासी हलकों में भी इसकी गंभीरता से चर्चा होगी।
नई बहस छिड़ी, आगे देखें क्या होता है…
कंवरलाल मीणा की दया याचिका ने राजस्थान की राजनीति में एक नई बहस छेड़ दी है। यह देखना अब दिलचस्प होगा कि राज्यपाल कानूनी सलाह के बाद किस दिशा में निर्णय लेते हैं। क्या यह निर्णय एक सजायाफ्ता जनप्रतिनिधि को फिर से सक्रिय राजनीति में लाएगा या कानून के दायरे में ही उसे रोक देगा?
फिलहाल, सभी की निगाहें राजभवन की ओर टिकी हुई हैं, जहां इस संवेदनशील मामले पर एक महत्वपूर्ण फैसला आने वाला है।