kailash mansarovar yatra :पांच वर्षों के लंबे अंतराल के बाद, भारत-चीन सीमा पर स्थित सिक्किम के नाथुला दर्रे के माध्यम से कैलाश मानसरोवर यात्रा 2025 का शुभारंभ हो गया है। सोमवार सुबह इस पवित्र यात्रा के पहले जत्थे में शामिल 36 श्रद्धालु, चीन के तिब्बती स्वायत्त क्षेत्र (TAR) में प्रवेश कर गए। तीर्थयात्रियों के इस पहले समूह में 23 पुरुष और 13 महिलाएं शामिल हैं, जिनकी उम्र 21 से 70 वर्ष के बीच है। इन्हें भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के दो संपर्क अधिकारी चीनी सीमा तक ले गए।
नाथुला से फिर शुरू हुई यात्रा, राज्यपाल ने दिखाई हरी झंडी
इस ऐतिहासिक मौके पर सिक्किम के राज्यपाल ओम प्रकाश माथुर ने नाथुला में तीर्थयात्रा को हरी झंडी दिखाई। उनके साथ सिक्किम विधानसभा की डिप्टी स्पीकर राजकुमारी थापा समेत कई मंत्री और विधायक मौजूद रहे। यह यात्रा 2020 में कोविड-19 महामारी और सीमा पर तनाव के चलते स्थगित कर दी गई थी, लेकिन अब यह फिर से आरंभ हो गई है, जिससे श्रद्धालुओं में उत्साह का माहौल है।
चीन की सीमा में श्रद्धालुओं का स्वागत, 11 दिन बिताएंगे तिब्बत में
तीर्थयात्री अब चीन के तिब्बती क्षेत्र में 11 दिन बिताएंगे। इस दौरान वे कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील के दर्शन करेंगे। जैसे ही तीर्थयात्रियों ने चीन की सीमा में प्रवेश किया, वहां मौजूद पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के अधिकारी और सैनिकों ने उनका पारंपरिक तरीके से स्वागत किया। यह यात्रा सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय संबंधों के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
अनुकूलन केंद्रों में ठहराव के बाद रवाना हुए श्रद्धालु
गंगटोक पहुंचने के बाद, श्रद्धालुओं ने 18वें माइल स्थित नवनिर्मित अनुकूलन केंद्र में दो दिन तक acclimatization के लिए विश्राम किया। इसके बाद उन्होंने शेरथांग केंद्र में भी दो दिन गुजारे। वहां उनकी चिकित्सा जांच और दस्तावेजों का सत्यापन किया गया। ये सभी प्रक्रियाएं पूरी करने के बाद, 20 जून को यह जत्था तिब्बत की ओर बढ़ा।
तीन महीने तक चलेगी यात्रा, 15 बैचों को मिल चुका है मंजूरी
साल 2025 की कैलाश मानसरोवर यात्रा जून से अगस्त के बीच आयोजित की जाएगी। विदेश मंत्रालय के अनुसार, इस वर्ष कुल 15 बैच यात्रा पर रवाना किए जाएंगे। इनमें से 10 बैच सिक्किम के नाथुला दर्रे और 5 बैच उत्तराखंड के लिपुलेख दर्रे के माध्यम से जाएंगे। प्रत्येक बैच में 50 तीर्थयात्री शामिल होंगे। इच्छुक यात्री kmy.gov.in पर जाकर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। ऑनलाइन आवेदन की प्रक्रिया साल 2015 से शुरू की गई थी, जिसके तहत कंप्यूटरीकृत प्रणाली से यात्रियों का चयन होता है और रूट तथा बैच आवंटित किए जाते हैं। आमतौर पर रूट या बैच में बदलाव संभव नहीं होता, लेकिन यदि खाली स्थान उपलब्ध हो तो परिवर्तन का अनुरोध स्वीकार किया जा सकता है।
धार्मिक महत्व: सात जन्मों के पापों से मुक्ति का मार्ग
कैलाश पर्वत, हिंदू धर्म में भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। स्कंद पुराण में उल्लेख है कि “कैलासं शिवपूजां च यदि कश्चित् करिष्यति, सप्तजन्मकृतं पापं तत्क्षणादेव नश्यति।” अर्थात कैलाश यात्रा करने मात्र से ही सात जन्मों के पाप समाप्त हो जाते हैं। इस यात्रा में मानसरोवर झील का विशेष महत्व है, जिसका नाम ‘मानस’ यानी मन से उत्पन्न शब्द से लिया गया है। यह झील ब्रह्माजी के ध्यान से उत्पन्न हुई मानी जाती है और इसका जल तीर्थ स्नान और तपस्या के लिए अत्यंत पवित्र माना गया है।
अन्य धर्मों में भी महत्वपूर्ण स्थान
कैलाश मानसरोवर यात्रा न केवल हिंदुओं के लिए बल्कि सिख, जैन और बौद्ध धर्मों के अनुयायियों के लिए भी अत्यंत पवित्र मानी जाती है। बौद्ध धर्म में कैलाश को ‘कांग रिंपोछे’, यानी कीमती रत्नों से युक्त पर्वत कहा गया है। यह स्थान चक्रसंवारा और वज्रयोगिनी जैसे प्रमुख तांत्रिक देवताओं का निवास स्थल माना गया है। मान्यता है कि गुरु पद्मसंभव ने यहां साधना की और इसे शक्ति के केंद्र के रूप में स्थापित किया। जैन धर्म में कैलाश के समीप स्थित अष्टापद को वह पावन भूमि माना गया है, जहां प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव ने मोक्ष प्राप्त किया था। यह स्थल मोक्षभूमि के रूप में जैन धर्मग्रंथों में वर्णित है। सिख परंपरा में भी कैलाश का उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि गुरु नानक देवजी ने अपनी यात्राओं के दौरान कैलाश का भ्रमण किया और वहां योगियों से संवाद स्थापित किया।
अध्यात्म और संस्कृति का संगम
कैलाश मानसरोवर यात्रा सिर्फ एक धार्मिक यात्रा नहीं है, बल्कि यह भारत और एशियाई सभ्यता के आध्यात्मिक मूल्यों, प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत संगम भी है। यह तीर्थ यात्रा कठिनाइयों से भरी जरूर है, लेकिन श्रद्धालुओं का विश्वास और संकल्प इसे दिव्य अनुभव बना देता है।
आस्था और संकल्प की पुनः आरंभित यात्रा
कैलाश मानसरोवर यात्रा 2025 की शुरुआत न केवल श्रद्धालुओं के लिए बल्कि पूरे देश के लिए आस्था और परंपरा की वापसी का संकेत है। पांच वर्षों बाद इस यात्रा का पुनः आरंभ होना न केवल प्रशासनिक तैयारी का प्रमाण है, बल्कि यह दिखाता है कि सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहरों को फिर से जीवंत करने का प्रयास सफल रहा है। जो लोग आत्मिक शांति, आध्यात्मिक उन्नति और परम मोक्ष की कामना रखते हैं, उनके लिए कैलाश मानसरोवर यात्रा एक अद्भुत अवसर है—एक ऐसी यात्रा जो जीवन भर स्मरणीय रहेगी।