5, 25 या 165 साल पुरानी मजारें? जयपुर के महारानी कॉलेज में मिला रहस्यमयी सच, प्रशासन की जांच से खुलेंगे इतिहास के राज

राजस्थान की राजधानी जयपुर के प्रतिष्ठित महारानी कॉलेज में स्थित तीन मजारों को लेकर उठा विवाद अब प्रशासनिक जांच के दायरे में पहुंच गया है। कॉलेज परिसर में धार्मिक ढांचे के रूप में मौजूद इन मजारों पर विवाद तब शुरू हुआ जब छात्र संगठनों ने सवाल उठाए

EDITED BY: Kamlesh Sharma

UPDATED: Friday, July 4, 2025

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राजस्थान की राजधानी जयपुर के प्रतिष्ठित महारानी कॉलेज में स्थित तीन मजारों को लेकर उठा विवाद अब प्रशासनिक जांच के दायरे में पहुंच गया है। कॉलेज परिसर में धार्मिक ढांचे के रूप में मौजूद इन मजारों पर विवाद तब शुरू हुआ जब छात्र संगठनों ने सवाल उठाए कि आखिर गर्ल्स कॉलेज में ये मजारें कैसे बनीं, और इनकी ऐतिहासिकता कितनी पुरानी है?

क्या ये ढांचे 5 साल पुराने हैं, 25 साल या फिर वाकई 165 साल पुराने? अब इन सवालों की जांच का जिम्मा जिला प्रशासन की विशेष कमेटी को सौंपा गया है, जो शुक्रवार 4 जुलाई से अपना काम शुरू कर रही है।


छह सदस्यीय कमेटी करेगी पूरे प्रकरण की जांच

जयपुर के जिला कलेक्टर की ओर से गठित छह सदस्यीय जांच कमेटी को मजारों की वास्तविक स्थिति, इतिहास और निर्माण की वैधता की जांच का जिम्मा सौंपा गया है। इस कमेटी में एसडीएम जयपुर राजेश जाखड़, उपायुक्त डॉ. प्रियवृत चारण, एडीसीपी बालाराम जाट, आर्कियोलॉजी अधीक्षक नीरज त्रिपाठी, सामाजिक कार्यकर्ता सुभाष बैरवा और कॉलेज की प्रिंसिपल प्रो. पायल लोढ़ा को सदस्य बनाया गया है।

कमेटी को निर्देश दिए गए हैं कि वे चार दिन के भीतर रिपोर्ट सौंपें, जिसमें सीसीटीवी फुटेज, पूर्व कर्मचारियों और छात्राओं के बयान, तथा साइट निरीक्षण के आधार पर निष्कर्ष निकाला जाएगा।


गर्ल्स कॉलेज में धार्मिक स्थल कैसे?

महारानी कॉलेज, राजस्थान यूनिवर्सिटी का एक संगठक संस्थान है, जहां केवल छात्राएं अध्ययन करती हैं। ऐसे में परिसर में स्थित मजारों पर महिलाओं की सुरक्षा और धार्मिक तटस्थता को लेकर सवाल खड़े हुए हैं।

छात्र संगठन ABVP ने कॉलेज में धार्मिक प्रतीकों की मौजूदगी का विरोध करते हुए चेतावनी दी है कि यदि कॉलेज प्रशासन ने इन मजारों को हटाने की दिशा में कदम नहीं उठाया तो वे आंदोलन करेंगे। उनका तर्क है कि सरकारी शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक गतिविधियों की अनुमति नहीं होनी चाहिए।


विधायक कागजी ने मजारों को बताया ऐतिहासिक

वहीं, कांग्रेस विधायक और मुख्य सचेतक रफीक खान तथा विधायक अमीन कागज़ी ने इन मजारों को लेकर अपने दावे पेश किए हैं। रफीक खान का कहना है कि ये मजारें कम से कम 25 साल पुरानी हैं, जबकि अमीन कागज़ी ने इसे 165 साल पुरानी कब्रें बताया है।

कागज़ी का कहना है कि अगर ये ढांचे हाल के होते तो इतने वर्षों से यहां कैसे रह पाते? उन्होंने सरकार से मांग की है कि वह आर्कियोलॉजिकल डिपार्टमेंट से रिकॉर्ड मंगवाकर इनका सत्यापन करवाए और बिना तथ्यात्मक आधार के कोई कार्रवाई न करे।

साथ ही उन्होंने राजनीतिक लाभ के लिए धार्मिक स्थलों को निशाना बनाए जाने की आलोचना की और इसे सामाजिक सौहार्द के लिए खतरनाक बताया।


छात्राएं भी चिंतित, परिसर की सुरक्षा पर सवाल


इस पूरे विवाद में कॉलेज की छात्राएं भी चिंता में हैं। सवाल उठ रहे हैं कि अगर परिसर में बाहरी लोगों की आवाजाही इन मजारों के बहाने हो रही है, तो क्या कॉलेज में सुरक्षा मानकों का पालन किया जा रहा है?

कई छात्राओं ने बताया कि उन्हें इन ढांचों के बारे में पहले कभी जानकारी नहीं दी गई थी, और अब अचानक यह मामला सामने आने से कॉलेज का वातावरण भी प्रभावित हुआ है।


मजारों के इतिहास से उठे नए सवाल

इस विवाद ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है – क्या इन ढांचों को वास्तव में ऐतिहासिक संरचना के रूप में देखा जाना चाहिए या हाल ही में अतिक्रमण की दृष्टि से इनका निर्माण हुआ है? क्या प्रशासन इनकी पुरातात्विक जांच करवाकर निष्कर्ष पर पहुंचेगा या सिर्फ राजनीतिक दबाव में कार्रवाई होगी?

इस सवाल का उत्तर अब जांच कमेटी की रिपोर्ट से मिलने की उम्मीद है। आर्कियोलॉजी विभाग के अधीक्षक नीरज त्रिपाठी के शामिल होने से यह आशा की जा रही है कि मजारों की ऐतिहासिकता और संरचनात्मक विश्लेषण को वैज्ञानिक आधार पर परखा जाएगा।


राजनीति और समाज के बीच की खींचतान

यह प्रकरण राजनीतिक रंग भी लेता जा रहा है। एक ओर जहां राजनीतिक दल अपने-अपने वोट बैंक की रणनीति के तहत बयानबाजी कर रहे हैं, वहीं सामाजिक संगठनों की मांग है कि शैक्षणिक परिसरों को धार्मिक विवादों से दूर रखा जाए।

इस बीच कॉलेज प्रशासन भी दुविधा में है। प्रिंसिपल प्रो. पायल लोढ़ा ने कहा है कि वह कमेटी की रिपोर्ट का इंतजार करेंगी और उसके अनुसार ही आगे की कार्रवाई की जाएगी।


जांच के बाद ही होगा फैसला

जांच कमेटी द्वारा रिपोर्ट सौंपने के बाद ही यह तय हो पाएगा कि ये ढांचे अवैध रूप से हाल में बनाए गए हैं या फिर वाकई ऐतिहासिक महत्व रखते हैं। फिलहाल, सभी की निगाहें प्रशासन और आर्कियोलॉजी विभाग की जांच पर टिकी हैं।

यह विवाद सिर्फ एक कॉलेज परिसर तक सीमित नहीं रह गया है, बल्कि यह राजस्थान में शैक्षणिक संस्थानों में धार्मिक प्रतीकों की उपस्थिति को लेकर व्यापक बहस का हिस्सा बन चुका है। अब देखना यह होगा कि प्रशासन इस जांच को कितनी पारदर्शिता और निष्पक्षता से अंजाम देता है, ताकि सामाजिक सौहार्द, छात्राओं की सुरक्षा और संस्थान की गरिमा – तीनों बरकरार रह सकें।