राजस्थान विश्वविद्यालय का परिसर सोमवार को किसी शादी समारोह की तरह सजा-संवरा नजर आया, लेकिन यह कोई उत्सव नहीं बल्कि लोकतंत्र के मौन क्रंदन का प्रतीक था। छात्रसंघ चुनावों की बहाली की मांग को लेकर छात्रों ने ऐसा सांकेतिक प्रदर्शन किया, जिसे देखकर पुलिस से लेकर विश्वविद्यालय प्रशासन तक सब चौंक उठे।
घोड़ी पर बैठे ‘मुख्यमंत्री’, बैंड-बाजे पर झूमते ‘मंत्री’ और ‘लोकतंत्र की विदाई’ की झांकी ने पूरे माहौल को तीव्र विरोध के रंग में रंग दिया।
‘लोकतंत्र की बारात’ से गूंजा विश्वविद्यालय परिसर
छात्र नेता अभिषेक चौधरी के नेतृत्व में हुए इस प्रदर्शन को नाम दिया गया – लोकतंत्र की विदाई बारात। प्रदर्शन में छात्र मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का मुखौटा पहनकर घोड़ी पर बैठे दिखाई दिए, तो वहीं उनके पीछे बैंड-बाजे पर कैबिनेट मंत्रियों के मुखौटे पहने अन्य छात्र नाचते-गाते चले।
यह दृश्य सिर्फ एक प्रदर्शन नहीं था, बल्कि उस निराशा और गुस्से का प्रकटीकरण था जो वर्षों से छात्रसंघ चुनावों को स्थगित किए जाने के कारण छात्रों के भीतर पल रहा है।
तख्तियों से निकली सरकार के खिलाफ चेतावनी
छात्रों के हाथों में “लोकतंत्र की बारात”, “संविधान की चिता सजाने वाले मुख्यमंत्री” और “छात्रसंघ चुनाव दो, वरना सड़कों पर आंधी आएगी” जैसे नारों से भरी तख्तियां थीं। इसके साथ एक पुरानी कार को सजाकर ‘लोकतंत्र की अर्थी’ के रूप में पेश किया गया।
छात्रों का यह सांकेतिक तरीका न केवल रचनात्मक था, बल्कि अत्यंत प्रभावशाली भी, जिसने देखते ही देखते विश्वविद्यालय में हलचल मचा दी।
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जब यह बारात विश्वविद्यालय परिसर में दाखिल हुई तो वहां मौजूद सुरक्षाकर्मी और प्रशासनिक अधिकारी भी स्तब्ध रह गए। कुछ क्षणों के लिए स्थिति तनावपूर्ण भी हो गई, लेकिन छात्रों ने स्पष्ट कर दिया कि यह विरोध शांतिपूर्ण और सांकेतिक है। पुलिस ने बाद में छात्रों को गेट पर ही रोक लिया और प्रदर्शन वहीं समाप्त कर दिया गया।
छात्रों का आरोप: लोकतंत्र की हत्या का उत्सव मना रही है सरकार
अभिषेक चौधरी ने कहा कि यह कोई साधारण विरोध नहीं है, यह उस क्रोध और हताशा का प्रतीक है जो हर छात्र के भीतर पनप रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार छात्रसंघ चुनावों को रोककर लोकतंत्र की बुनियाद को कमजोर कर रही है।
विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों में, जहां नेतृत्व, बहस और विचारों का विकास होता है, वहां छात्रों को उनके संवैधानिक अधिकारों से वंचित करना एक पूरी पीढ़ी को राजनीतिक रूप से अपंग बनाने की साजिश है।
छात्रसंघ चुनावों की बहाली की मांग के साथ सड़कों पर उतरते युवा
छात्रों का कहना है कि छात्रसंघ चुनावों के बहाल होने तक यह संघर्ष जारी रहेगा। यह विरोध सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं, बल्कि एक व्यापक आंदोलन की शुरुआत है। विश्वविद्यालयों को लोकतंत्र की नर्सरी माना जाता है। अगर इन्हीं संस्थानों में युवाओं को बोलने, चुनने और चुने जाने का हक नहीं मिलेगा, तो आने वाली पीढ़ियां नेतृत्व कैसे विकसित करेंगी?
छात्रों का सब्र टूटने के कगार पर
छात्र नेताओं ने यह भी चेताया कि अगर सरकार यह सोचती है कि छात्र इस अन्याय पर चुप रहेंगे तो यह उसकी सबसे बड़ी भूल है। यह प्रतीकात्मक ‘बारात’ आज शांतिपूर्ण ढंग से निकाली गई है, लेकिन कल यही आक्रोश जन आंदोलन का रूप ले सकता है।
विश्वविद्यालय से उठती यह आवाज केवल एक संस्थान की नहीं, बल्कि पूरे राज्य के युवाओं की चेतावनी है कि लोकतंत्र को दबाने की कोशिशों का करारा जवाब दिया जाएगा।
छात्र राजनीति की अनदेखी महंगी पड़ सकती है सरकार को
राजस्थान यूनिवर्सिटी में ‘लोकतंत्र की विदाई’ के नाम पर निकाली गई यह बारात अपने पीछे गहरे सवाल छोड़ गई है। क्या एक संवैधानिक राज्य में छात्रों को उनकी राजनीतिक भागीदारी से वंचित करना उचित है? क्या विश्वविद्यालय सिर्फ डिग्री बांटने के केंद्र बनकर रह जाएंगे, जहां विचारों की स्वतंत्रता दम तोड़ देगी?
छात्रों ने आज जो प्रतीकात्मक विरोध किया, वह केवल मुख्यमंत्री या उनकी सरकार पर हमला नहीं था, वह उस पूरे राजनीतिक सिस्टम पर सवाल था जो युवाओं को ‘मतदाता’ तो मानता है, लेकिन उन्हें लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा बनने से रोकता है। अगर ये सवाल अनसुने रह गए, तो ये बारात कल सड़कों पर एक भूचाल बन सकती है, जिसकी गूंज दूर-दूर तक सुनाई देगी।