जयपुर की जिला एवं सत्र न्यायालय (मेट्रो द्वितीय) में चल रहे एक संपत्ति विवाद के मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया गया है, जो भविष्य में ऐसे कई मामलों में मिसाल बनेगा। इस केस में अदालत ने स्पष्ट कर दिया है कि अगर दूसरी शादी हिंदू रीति-रिवाज और विधिवत वैवाहिक रस्मों के बिना की गई है
तो उसे वैध नहीं माना जा सकता और उस आधार पर मृतक की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं बनता। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि तलाक के बाद भी संतान का संपत्ति पर अधिकार बना रहता है, चाहे वह नाबालिग हो या बालिग।
तीन साल पहले तलाक, फिर दूसरी शादी और अचानक मृत्यु
यह मामला बीएसएनएल के एक अधिकारी रोशनलाल सैनी से जुड़ा है, जिनकी शादी वर्ष 2006 में हुई थी। कुछ साल बाद एक बेटी भी हुई। लेकिन मार्च 2018 में पत्नी से तलाक हो गया। तलाक के बाद उनकी बेटी अपनी मां के साथ रहने लगी।
तीन साल बाद, यानी अप्रैल 2021 में रोशनलाल ने एक अन्य महिला से विवाह किया, लेकिन यह शादी न तो सामाजिक मान्यताओं के अनुसार हुई और न ही इसमें सात फेरे या धार्मिक वैवाहिक रस्में निभाई गईं। शादी के महज आठ दिन बाद ही रोशनलाल का निधन हो गया।
नाबालिग बेटी, मां और दूसरी महिला ने किया संपत्ति पर दावा
मृत्यु के बाद संपत्ति और सेवा परिलाभों को लेकर विवाद खड़ा हो गया। रोशनलाल की नाबालिग बेटी, मां और दूसरी महिला – तीनों ने खुद को उत्तराधिकारी बताते हुए दावा पेश किया। इस मामले की सुनवाई जज रीटा तेजपाल की अदालत में हुई।
कोर्ट में सभी पक्षों की दलीलें और दस्तावेज़ प्रस्तुत किए गए। केस में वकील सुधीर शुक्ला की ओर से रोशनलाल की पहली पत्नी की बेटी की ओर से पैरवी की गई।
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कोर्ट ने कहा – तलाक से संबंध खत्म होते हैं, लेकिन संतान का नहीं
न्यायाधीश रीटा तेजपाल ने फैसला सुनाते हुए कहा कि विवाह विच्छेद से पति-पत्नी का रिश्ता भले ही खत्म हो जाए, लेकिन संतान का अपने पिता से संबंध नहीं टूटता। पिता की संपत्ति में बेटी का पूरा हक है, चाहे वह तलाक के बाद भी जन्मी हो या मां के साथ रह रही हो।
इस आधार पर कोर्ट ने रोशनलाल की नाबालिग बेटी को संपत्ति का उत्तराधिकारी माना। साथ ही अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि मृतक की मां भी उत्तराधिकारी हैं, क्योंकि पुत्र के निधन के बाद माता-पिता को भी वैधानिक अधिकार प्राप्त होते हैं।
दूसरी शादी बिना रस्मों के – पत्नी का दावा खारिज
मामले का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह रहा कि रोशनलाल सैनी की दूसरी शादी को लेकर कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया। अदालत ने पाया कि यह विवाह विधिवत नहीं हुआ था – न तो अग्नि के समक्ष सात फेरे लिए गए, न ही हिंदू विवाह की आवश्यक सामाजिक परंपराएं निभाई गईं।
विवाह की कोई विधिवत रजिस्ट्री या प्रमाण नहीं था। जज ने कहा कि सिर्फ साथ रहने या शादी का दावा करने से विवाह वैध नहीं हो जाता। हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत बिना धार्मिक संस्कारों के कोई विवाह मान्य नहीं माना जा सकता।
इस आधार पर कोर्ट ने यह घोषित किया कि दूसरी महिला को मृतक की संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है। उन्होंने महज आठ दिन पहले विवाह का दावा किया था, जो सबूतों और परंपराओं के अभाव में कोर्ट द्वारा अस्वीकार कर दिया गया।
कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण फैसला
इस फैसले से यह स्पष्ट होता है कि विवाह की वैधता सिर्फ सहमति या एक-दूसरे के साथ रहने से सिद्ध नहीं होती, विशेषकर हिंदू विवाह अधिनियम के तहत। धार्मिक रस्में, वैवाहिक परंपराएं और समाज की मान्यता अनिवार्य होती हैं।
इस निर्णय से न केवल विवाह व्यवस्था को कानूनी स्पष्टता मिली है, बल्कि तलाक के बाद बच्चों के अधिकारों की रक्षा भी सुनिश्चित हुई है।
संपत्ति का अधिकार नहीं दिया जाएगा
जयपुर की अदालत का यह फैसला स्पष्ट संकेत देता है कि तलाकशुदा दंपत्ति की संतानें अपने पिता की संपत्ति की उत्तराधिकारी बनी रहेंगी और बिना विधिवत विवाह के किसी महिला को पत्नी मानकर संपत्ति का अधिकार नहीं दिया जा सकता।
यह निर्णय एक संवेदनशील सामाजिक विषय पर न्यायपूर्ण दृष्टिकोण को दर्शाता है और भविष्य में ऐसे विवादों के लिए एक कानूनी मिसाल के रूप में देखा जाएगा।