राजस्थान की भजनलाल सरकार ने विशेष आवश्यकता वाले छात्रों के लिए दी जाने वाली आर्थिक सहायता योजनाओं में बड़ा बदलाव कर दिया है। जहां एक ओर सरकार का दावा है कि यह निर्णय शिक्षा में समावेशन और गुणवत्तापूर्ण बदलाव के लिए उठाया गया है
वहीं दूसरी ओर वास्तविकता यह है कि जिन योजनाओं के सहारे कई अभिभावक अपने विशेष बच्चों की पढ़ाई में मदद पाते थे, उनमें अब कटौती कर दी गई है।
पहले की तुलना में भत्ता हुआ कम
राज्य सरकार की नई वार्षिक कार्य योजना 2025-26 के अनुसार, विशेष आवश्यकता वाले विद्यार्थियों को मिलने वाले चार प्रमुख भत्तों—परिवहन भत्ता, एस्कॉर्ट भत्ता, रीडर भत्ता और स्टाइपेंड—में से तीन को कम कर दिया गया है।
पहले जहां इन छात्रों को परिवहन के लिए 500 रुपये प्रति माह मिलते थे, अब यह राशि घटाकर 300 रुपये कर दी गई है। इसी तरह, एस्कॉर्ट भत्ता को 400 रुपये से घटाकर 300 और रीडर भत्ता को 250 से घटाकर 200 रुपये कर दिया गया है। केवल स्टाइपेंड की राशि 200 रुपये ही यथावत रखी गई है।
इसका सीधा असर सालाना मिलने वाली कुल सहायता राशि पर पड़ेगा, क्योंकि ये सभी भत्ते 10 माह के शैक्षणिक सत्र के हिसाब से दिए जाते हैं। यानी एक छात्र को अब सालाना मिलने वाली आर्थिक मदद में लगभग 40 प्रतिशत तक की कटौती हो गई है।
सरकार का दावा और वास्तविकता में अंतर
राज्य सरकार ने इस बदलाव को शिक्षा में समावेशन और समग्र विकास के नजरिए से उठाया गया कदम बताया है। समग्र शिक्षा अभियान के तहत तैयार की गई इस कार्य योजना का उद्देश्य सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले विशेष आवश्यकता वाले विद्यार्थियों को मुख्यधारा की शिक्षा प्रणाली में बेहतर तरीके से शामिल करना है।
इसके लिए सरकार ने नई कार्यशाला, शिक्षक प्रशिक्षण और समावेशी शिक्षण सामग्री पर ध्यान केंद्रित करने की बात कही है।हालांकि, जमीनी हकीकत यह है कि जिन बच्चों को पहले से ही अतिरिक्त सहायता की जरूरत होती है, उनकी सुविधा कम कर देना इस दिशा में उल्टा कदम माना जा सकता है।
कई अभिभावकों ने भी इस कटौती को लेकर नाराजगी जताई है। उनका कहना है कि बढ़ती महंगाई में 200 रुपये से लेकर 300 रुपये प्रति माह की सहायता से न तो कोई ट्रांसपोर्ट सुविधा मिल सकती है और न ही एस्कॉर्ट या रीडर की फीस चुकाई जा सकती है।
किसे मिलेगा लाभ और कैसे करें आवेदन
इस योजना के अंतर्गत केवल वे छात्र लाभ के पात्र हैं जो राजस्थान के सरकारी स्कूलों में कक्षा 1 से 12 तक अध्ययनरत हैं और जिन्हें किसी प्रकार की विशेष आवश्यकता है। लाभ के लिए अभ्यर्थी को एक निर्धारित आवेदन पत्र भरना होगा जिसमें चिकित्सकीय प्रमाण-पत्र, स्कूल से जुड़ी जानकारी और अन्य आवश्यक दस्तावेज संलग्न करना अनिवार्य होगा।
इन सभी दस्तावेजों की जांच स्कूल स्तर पर गठित समिति द्वारा की जाएगी और स्वीकृति के बाद भत्ते की राशि छात्रों के खातों में भेजी जाएगी। हर भत्ते के लिए अलग-अलग मानदंड और पात्रता शर्तें तय की गई हैं, जिनका पालन करना जरूरी होगा।
सवालों के घेरे में है यह निर्णय
राज्य सरकार द्वारा पेश की गई इस योजना ने विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के अधिकारों और उनके लिए बनने वाली नीतियों पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जबकि केंद्र और अन्य राज्य सरकारें इस समय समावेशी शिक्षा को प्रोत्साहित करने और विशेष बच्चों के लिए विशेष संसाधन विकसित करने पर जोर दे रही हैं, राजस्थान में उल्टा रुझान देखने को मिला है।
विशेषज्ञों की मानें तो शिक्षा में समावेशन का उद्देश्य केवल मुख्यधारा में शामिल करना नहीं होता, बल्कि उस प्रक्रिया को आसान बनाना और सहायता प्रदान करना भी उसका अहम हिस्सा होता है। ऐसे में जब परिवहन, एस्कॉर्ट और रीडर जैसी मूलभूत आवश्यकताओं पर मिलने वाली आर्थिक मदद घटा दी जाती है, तो यह समावेशन को बाधित करने वाला फैसला बन सकता है।
आगे क्या करें अभिभावक?
ऐसे में विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के अभिभावकों को यह सलाह दी जा रही है कि वे अपने बच्चों के लिए सभी आवश्यक प्रमाण-पत्र समय रहते तैयार रखें और स्कूल प्रशासन से संपर्क कर आवेदन प्रक्रिया को शीघ्र पूरा करें।
साथ ही, सरकारी स्तर पर इस निर्णय के विरोध में सामूहिक रूप से अपनी आवाज उठाना भी जरूरी हो गया है ताकि इन बच्चों को उनकी जरूरत के अनुसार मदद मिल सके।
ज़रूरतमंद वर्ग की सहायता में कटौती
भजनलाल सरकार का यह कदम जहां एक तरफ शिक्षा व्यवस्था को आधुनिक बनाने की बात करता है, वहीं दूसरी ओर सबसे ज़रूरतमंद वर्ग की सहायता में कटौती कर देता है। यह विरोधाभास दर्शाता है कि नीति बनाने में केवल आंकड़ों और दस्तावेज़ों से काम नहीं चलता, बल्कि जमीन की हकीकत और मानवीय संवेदनाएं भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं। विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए यह निर्णय राहत कम और झटका ज्यादा साबित हो सकता है।