जयपुर। राजस्थान की राजधानी जयपुर में एक संदिग्ध की पुलिस हिरासत में मौत ने न केवल सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि पुलिस प्रशासन को भी कठघरे में ला खड़ा किया है। चोरी के आरोप में हिरासत में लिए गए मनीष पांडे (28) ने सदर थाने में आत्महत्या कर ली।
इस गंभीर घटना के बाद जयपुर पुलिस कमिश्नरेट ने त्वरित कार्रवाई करते हुए छह पुलिसकर्मियों को लाइन हाजिर कर दिया है।
यह थी घटना : हिरासत में युवक की मौत
शनिवार की सुबह सदर थाने में उस समय हड़कंप मच गया जब मनीष पांडे का शव थाने के एक कमरे में फंदे से लटका मिला। पुलिस के अनुसार, उसे चोरी के आरोप में पूछताछ के लिए थाने लाया गया था। जब तक पुलिसकर्मी मौके पर पहुंचे और शव को नीचे उतारा, तब तक उसकी मौत हो चुकी थी।
पुलिस पर सवाल : FIR में गिरफ्तारी का उल्लेख नहीं
इस घटना के बाद पुलिस ने आनन-फानन में एक एफआईआर दर्ज की, जिसमें मनीष पांडे की गिरफ्तारी का कोई उल्लेख नहीं किया गया था।
इससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि उसे बिना वैधानिक प्रक्रिया के हिरासत में रखा गया था, जिसे “अवैध हिरासत” की श्रेणी में गिना जा सकता है। यह गैरकानूनी रूप से बंद करना और मानवाधिकार उल्लंघन के अंतर्गत गंभीर मामला बनता है।
पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई : छह को लाइन हाजिर किया गया
जयपुर के पुलिस आयुक्त द्वारा मामले की गंभीरता को देखते हुए सदर थाना प्रभारी (SHO) देवेंद्र प्रताप सहित छह पुलिसकर्मियों को लाइन हाजिर कर दिया गया है।
इनमें शामिल हैं, देवेंद्र प्रताप (SHO), मुकेश (SI), निरमा पूनिया (SI), सुभाष (हेड कांस्टेबल), नरेश (कांस्टेबल), दिलीप (कांस्टेबल)। कार्रवाई डीसीपी वेस्ट अमित कुमार बुडानिया के निर्देश पर की गई है। विभागीय जांच की जिम्मेदारी एसीपी चौमू को सौंपी गई है।
न्यायिक जांच के आदेश : मजिस्ट्रेट स्तर पर होगी पड़ताल
घटना की संवेदनशीलता को देखते हुए अब इस मामले की जांच न्यायिक मजिस्ट्रेट के अधीन होगी। यह निर्णय राजस्थान पुलिस नियमावली और मानवाधिकार आयोग के दिशा-निर्देशों के अनुसार लिया गया है।
न्यायिक मजिस्ट्रेट घटना से जुड़े सभी तथ्यों की निष्पक्ष जांच करेंगे, जिसमें हिरासत की वैधता, CCTV फुटेज की जांच, मेडिकल रिपोर्ट, और आत्महत्या की परिस्थितियां शामिल होंगी।
मानवाधिकार उल्लंघन का मामला : परिवार और संगठनों की मांगें
मृतक मनीष पांडे के परिवार और मानवाधिकार संगठनों ने मामले की निष्पक्ष जांच की मांग की है। उठाए गए प्रमुख सवालों में ये हैं:
थाने में बंद व्यक्ति के पास फांसी लगाने का फंदा कैसे आया?
क्या थाने के सभी CCTV कैमरे चालू थे?
क्या परिजनों को समय पर हिरासत की सूचना दी गई?
क्या मनीष पांडे की मानसिक स्थिति का आकलन किया गया?
इन सवालों के जवाब अभी तक नहीं मिले हैं, जिससे पुलिस की भूमिका पर संदेह और गहराया है।
कानूनी पहलू : अवैध हिरासत और कस्टोडियल डेथ
भारतीय कानून के तहत किसी भी व्यक्ति को बिना गिरफ्तारी रिकॉर्ड किए थाने में रखना अवैध हिरासत की श्रेणी में आता है। सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों में स्पष्ट किया गया है कि हिरासत में आत्महत्या या मौत के मामलों में संबंधित पुलिसकर्मियों की जवाबदेही तय की जानी चाहिए।
इसके अतिरिक्त, “कस्टोडियल डेथ” के मामलों में पुलिस को यह सिद्ध करना होता है कि हिरासत कानूनी थी और सुरक्षा मानकों का पालन किया गया। यह मामला अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) के दायरे में भी आ सकता है।
पुलिस के भरोसे की फिर परीक्षा
जयपुर में हुई यह घटना एक बार फिर पुलिस कार्यप्रणाली, जवाबदेही और मानवाधिकारों के पालन को लेकर बड़े प्रश्न खड़े करती है। जब तक जांच पूरी नहीं होती और सभी तथ्यों को उजागर नहीं किया जाता, तब तक पुलिस पर अविश्वास और सार्वजनिक आक्रोश बना रहेगा। अब निगाहें न्यायिक जांच और प्रशासन की पारदर्शिता पर टिकी हैं।