500 आदिवासी छात्रों के नाम पर 1800 करोड़ की ठगी! राजस्थान से सामने आया सबसे बड़ा साइबर घोटाला?

राजस्थान में एक चौंकाने वाला साइबर घोटाला सामने आया है, जिसमें राज्य के दक्षिणी जिलों के 500 से अधिक आदिवासी छात्रों के फर्जी बैंक खातों के जरिये करीब 1800 करोड़ रुपये की अवैध लेन-देन की बात सामने आई है। इस घोटाले का खुलासा बांसवाड़ा-डूंगरपुर से भारत आदिवासी

EDITED BY: Kamlesh Sharma

UPDATED: Thursday, July 10, 2025

rajasthan-cyber-ghotala-1800-crore-tribal-student-scam


राजस्थान में एक चौंकाने वाला साइबर घोटाला सामने आया है, जिसमें राज्य के दक्षिणी जिलों के 500 से अधिक आदिवासी छात्रों के फर्जी बैंक खातों के जरिये करीब 1800 करोड़ रुपये की अवैध लेन-देन की बात सामने आई है।

इस घोटाले का खुलासा बांसवाड़ा-डूंगरपुर से भारत आदिवासी पार्टी (BAP) के सांसद राजकुमार रोत ने किया है। उन्होंने इस मामले को गंभीर बताते हुए राजस्थान पुलिस महानिदेशक (DGP) को पत्र लिखकर मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है।


बैंकों और छात्रों के बीच भरोसे की आड़ में फर्जीवाड़ा


सांसद रोत के मुताबिक, डूंगरपुर जिले के साथ-साथ बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, उदयपुर और अन्य दक्षिणी जिलों के कॉलेजों में पढ़ने वाले गरीब आदिवासी छात्रों को निशाना बनाया गया।

आरोप है कि इंडसइंड बैंक, एचडीएफसी, एक्सिस बैंक और बैंक ऑफ महाराष्ट्र सहित कई नामी बैंकों के कर्मचारियों ने कॉलेज परिसरों में पहुंचकर छात्रों और उनके परिजनों को सरकारी योजनाओं, छात्रवृत्ति, शिक्षा ऋण और पैन कार्ड जैसी सुविधाएं दिलाने का झांसा दिया।

इस भरोसे के बदले छात्रों से आधार कार्ड, फोटो और हस्ताक्षर जैसे जरूरी दस्तावेज एकत्र किए गए। बाद में इन दस्तावेजों की मदद से संबंधित बैंकों में छात्रों के नाम पर फर्जी खाते खोले गए और फिर उन्हीं खातों का इस्तेमाल 1800 करोड़ रुपये के संदिग्ध और अवैध लेन-देन में किया गया।

सांसद के अनुसार, अधिकतर पीड़ित छात्रों को इस घोटाले की भनक तब लगी, जब उन्होंने एटीएम कार्ड की मांग की और बैंक कर्मचारियों ने तकनीकी दिक्कतों का हवाला देकर उन्हें लगातार टालना शुरू कर दिया।

यह भी पढ़ें – 


बैंक पहुंचे पीड़ित, तब हुआ घोटाले का पर्दाफाश


कई महीनों तक भ्रम में रहने के बाद जब छात्र और उनके परिजन बैंकों में पहुंचकर जानकारी लेने लगे, तब जाकर इस फर्जीवाड़े की परतें खुलनी शुरू हुईं। लोगों को यह जानकर हैरानी हुई कि उनके खातों से कई बार लाखों रुपये का लेन-देन हुआ है, जिसके बारे में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी।

इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि इस पूरे नेटवर्क में केवल कुछ बिचौलिए नहीं, बल्कि बैंककर्मी और बड़े साइबर अपराधी भी शामिल हैं। सांसद रोत का दावा है कि बैंक प्रबंधन ने फिलहाल केवल कुछ कर्मचारियों को निलंबित कर कार्रवाई का झांसा दिया है, जबकि असली दोषी अब भी गिरफ्त से बाहर हैं।

उन्होंने यह भी कहा कि बैंकिंग प्रणाली में इस स्तर की लापरवाही और मिलीभगत अगर साबित होती है, तो यह देशभर के ग्राहकों की सुरक्षा पर सवाल खड़े करती है।


पुलिस कार्रवाई पर उठे सवाल, पीड़ितों को बताया जा रहा दोषी


सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि जहां छात्रों को न्याय मिलना चाहिए था, वहीं उनके खिलाफ ही कार्रवाई हो रही है। सांसद रोत ने आरोप लगाया है कि पुलिस प्रशासन असली अपराधियों तक पहुंचने के बजाय निर्दोष पीड़ितों को ही शक के घेरे में लेकर पूछताछ और दबाव बना रहा है।

उनका कहना है कि जिन छात्रों ने कभी बैंकिंग लेन-देन का अनुभव तक नहीं लिया, उन्हें आज भारी मानसिक तनाव का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने यह भी बताया कि यह घोटाला सिर्फ डूंगरपुर तक सीमित नहीं है, बल्कि आसपास के आदिवासी जिलों में भी ऐसी ही घटनाएं सामने आ रही हैं।

इससे साफ है कि यह एक संगठित साइबर गिरोह का हिस्सा हो सकता है, जिसने बैंकों और छात्रों के बीच के भरोसे को अपना हथियार बनाया।


CBI जांच की मांग, दोषियों को मिले सख्त सजा


सांसद राजकुमार रोत ने इस पूरे प्रकरण की निष्पक्ष और पारदर्शी जांच के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) या किसी स्वतंत्र एजेंसी से जांच कराने की मांग की है। उनका तर्क है कि राज्य पुलिस की कार्यप्रणाली पर सवालिया निशान हैं और जब तक जांच किसी बाहरी एजेंसी द्वारा नहीं की जाएगी, तब तक सच्चाई सामने नहीं आ पाएगी।

सांसद ने यह भी कहा कि यह मामला न केवल आर्थिक अपराध का है, बल्कि यह आदिवासी समुदाय के विश्वास और अधिकारों का उल्लंघन भी है। इसलिए दोषियों को केवल गिरफ्तार करना ही काफी नहीं, उन्हें ऐसी सजा दी जानी चाहिए जो आगे के लिए उदाहरण बने।


सरकारी योजनाओं की आड़ में ठगने का सिलसिला जारी


राजस्थान में सामने आया यह 1800 करोड़ रुपये का साइबर घोटाला केवल एक वित्तीय घोटाला नहीं, बल्कि सामाजिक और प्रशासनिक विफलता का भी उदाहरण है। आदिवासी छात्रों के नाम पर हुए इस फर्जीवाड़े ने यह साफ कर दिया है कि आज भी देश के कई हिस्सों में शिक्षा और सरकारी योजनाओं की आड़ में गरीबों को ठगने का सिलसिला जारी है।

ऐसे में जरूरी है कि जांच में पारदर्शिता बरती जाए और पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए हर संभव कदम उठाया जाए।