“कांग्रेस की गाथा है, नहीं पढ़ाएंगे”: राजस्थान में 12वीं की किताब पर सियासी आग क्यों भड़की?

राजस्थान में स्कूली पाठ्यक्रम एक बार फिर राजनीतिक बहस का केंद्र बन गया है। सत्ता परिवर्तन के बाद शिक्षा में विचारधारा के टकराव को लेकर उठने वाले सवाल अब और तीखे होते जा रहे हैं। ताजा विवाद 12वीं कक्षा की इतिहास की किताब को लेकर शुरू हुआ

EDITED BY: Kamlesh Sharma

UPDATED: Thursday, July 10, 2025

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राजस्थान में स्कूली पाठ्यक्रम एक बार फिर राजनीतिक बहस का केंद्र बन गया है। सत्ता परिवर्तन के बाद शिक्षा में विचारधारा के टकराव को लेकर उठने वाले सवाल अब और तीखे होते जा रहे हैं।

ताजा विवाद 12वीं कक्षा की इतिहास की किताब को लेकर शुरू हुआ है, जिसमें शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने सीधे तौर पर कांग्रेस पार्टी पर इतिहास को अपने पक्ष में पेश करने का आरोप लगाया है। उन्होंने कहा है कि किताब में सिर्फ कांग्रेस और उसके नेताओं की गाथाएं हैं, इसलिए ऐसी पुस्तकें अब स्कूलों में नहीं पढ़ाई जाएंगी।


कांग्रेस के महिमामंडन का आरोप, पीएम मोदी गायब


शिक्षा मंत्री का मुख्य आपत्ति 12वीं की किताब ‘आज़ादी के बाद का स्वर्णिम इतिहास – भाग 2’ को लेकर है। इस पुस्तक में स्वतंत्र भारत के प्रधानमंत्रियों और घटनाक्रमों का उल्लेख है, लेकिन इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम या योगदान लगभग नदारद है।

किताब के कई पन्नों पर पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और मनमोहन सिंह के फोटो और विस्तृत विवरण हैं, जबकि प्रधानमंत्री मोदी का नाम तक नहीं लिया गया। दिलावर का कहना है कि किताब में “लोकतंत्र की हत्या करने वालों की प्रशंसा की गई है और यह पूरी तरह से पक्षपातपूर्ण है।

उन्होंने कहा, “ऐसी किताबें हम राजस्थान के बच्चों को नहीं पढ़ा सकते, जिनमें एक राजनीतिक दल को नायक और बाकी सबको खलनायक की तरह चित्रित किया गया हो। यह इतिहास की पढ़ाई नहीं, बल्कि कांग्रेस की विचारधारा थोपने की कोशिश है।”

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बोर्ड की प्रक्रिया पर भी उठे सवाल


मामले में माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के सचिव कैलाशचंद शर्मा का कहना है कि स्कूल की किताबों का सिलेबस एक साल पहले ही तय हो जाता है। वर्तमान में जो किताबें छपी हैं, वो पिछली सरकार के समय के निर्णय पर आधारित हैं।

शर्मा ने यह भी कहा कि सरकार चाहे तो सिलेबस की समीक्षा की जा सकती है, लेकिन समस्या यह है कि शिक्षा बोर्ड में पिछले तीन वर्षों से कोई स्थायी अध्यक्ष या विशेषज्ञ समिति नियुक्त नहीं हुई है, जिससे सिलेबस में बदलाव की प्रक्रिया अटकी हुई है।


राजनीति बनाम शिक्षा: विचारधारा की लड़ाई


राजस्थान में यह कोई पहली बार नहीं है, जब इतिहास की किताबें सियासी बहस का हिस्सा बनी हों। इससे पहले भी अकबर और महाराणा प्रताप को लेकर किताबों में बदलाव को लेकर विवाद हो चुका है।

सत्ता में आने वाली हर सरकार शिक्षा के पाठ्यक्रम को अपने अनुकूल ढालने की कोशिश करती रही है। भाजपा सरकार जहां खुद को सांस्कृतिक गौरव और राष्ट्रवाद की धारा से जोड़ती है, वहीं कांग्रेस की किताबें अक्सर लोकतांत्रिक संस्थानों के निर्माण और समाजवादी नीतियों की उपलब्धियों को प्राथमिकता देती रही हैं।

इसी विवाद की कड़ी में यह आरोप लगाया गया है कि किताबों के माध्यम से छात्रों को इतिहास का एकतरफा और राजनीतिक दृष्टिकोण से प्रेरित पाठ पढ़ाया जा रहा है, जिससे उनमें पूर्वाग्रह पैदा हो सकता है।


शिक्षा के राजनीतिकरण पर उठते सवाल


विशेषज्ञों का मानना है कि इतिहास को राजनीतिक रंग देना शिक्षा की निष्पक्षता को प्रभावित करता है। विद्यार्थियों को यदि किसी एक दल की विचारधारा को ही पढ़ाया जाएगा, तो वे स्वतंत्र सोच और विश्लेषण से वंचित रह जाएंगे।

राजस्थान में पाठ्यक्रमों को लेकर लगातार होने वाली खींचतान यह संकेत देती है कि शिक्षा व्यवस्था विचारधाराओं की लड़ाई का मैदान बनती जा रही है। एक ओर जहां सरकारें बच्चों को “सही इतिहास” पढ़ाने की बात करती हैं, वहीं दूसरी ओर यह सवाल भी उठता है कि क्या सही इतिहास वही है, जो सत्ता पक्ष को पसंद हो?


सिलेबस के नाम पर सियासत कब तक?


राजस्थान में 12वीं की किताब को लेकर शुरू हुआ यह विवाद केवल एक पुस्तक तक सीमित नहीं है। यह सत्ता, विचारधारा और इतिहास के बीच चल रही खींचतान की अभिव्यक्ति है। शिक्षा का उद्देश्य ज्ञान देना है, न कि राजनीतिक झुकाव पैदा करना।

ऐसे में यह जरूरी हो गया है कि स्कूलों के पाठ्यक्रम तय करने की प्रक्रिया में इतिहासकारों, शिक्षाविदों और निष्पक्ष विशेषज्ञों की भूमिका सुनिश्चित की जाए, ताकि छात्र राजनीति नहीं, बल्कि तथ्यात्मक और संतुलित इतिहास पढ़ सकें।

राज्य सरकार यदि शिक्षा के क्षेत्र में सुधार लाना चाहती है, तो उसे पहले सिलेबस तय करने वाली संस्थाओं को मजबूत करना होगा और राजनीति से ऊपर उठकर छात्रों के हित में निर्णय लेने होंगे। वरना आने वाली पीढ़ियां भी सिलेबस के इस सियासी संग्राम की शिकार बनती रहेंगी।