राजस्थान के विश्वविद्यालय परिसरों में छात्रसंघ चुनावों की बहाली को लेकर लंबे समय से चल रही खामोशी अब छात्रों के विरोध प्रदर्शन से टूट गई है। इस बार विरोध का तरीका बेहद अनोखा और प्रतीकात्मक रहा।
विश्वविद्यालय के बाहर छात्र नेताओं ने उन नेताओं के कट-आउट लगाए जो कभी छात्र राजनीति के दम पर ही राष्ट्रीय और प्रांतीय राजनीति में पहचान बना चुके हैं।
छात्रों ने इन कट-आउट्स के जरिये अपनी बात सरकार और जनता तक पहुंचाने की कोशिश की कि जिन नेताओं ने छात्रसंघ के मंच से अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की, वही आज इन चुनावों की बहाली को लेकर चुप हैं या विरोधाभासी बयान दे रहे हैं।
कई प्रमुख नेताओं के कट-आउट बने विरोध का माध्यम
प्रदर्शन के दौरान जिन नेताओं के कट-आउट लगाए गए, उनमें केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, सांसद हनुमान बेनीवाल, विधायक हरीश चौधरी, विधायक रविंद्र सिंह भाटी, मनीष यादव, मुकेश भाकर, रामनिवास गावड़िया, अभिमन्यु पूनिया, विकास चौधरी, कालीचरण सराफ, पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़, पूर्व मंत्री राजपाल सिंह शेखावत, प्रताप सिंह खाचरियावास, डॉ. रघु शर्मा, पूर्व विधायक महेंद्र चौधरी, राजकुमार शर्मा, अशोक लाहोटी और रामलाल शर्मा जैसे दिग्गज नेता शामिल हैं।
इन सभी नेताओं की राजनीति की शुरुआत छात्रसंघ चुनावों से हुई थी, लेकिन अब छात्रसंघ की बहाली को लेकर न उनकी कोई पहल दिख रही है और न ही कोई ठोस प्रयास।
छात्रों का कहना है कि जब इन नेताओं ने अपने संघर्ष की शुरुआत छात्र राजनीति से की थी, तब उन्हें इसी मंच ने भाषण, नेतृत्व और जनसंपर्क का मंच दिया था। लेकिन अब जब छात्रों के हक की बात है, तो वही नेता या तो खामोश हैं या भूल गए हैं कि लोकतंत्र की जड़ें इन्हीं विश्वविद्यालयों में पनपती हैं।
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अशोक गहलोत पर विरोधाभासी भूमिका का आरोप
पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस मुद्दे पर छात्रों के विशेष निशाने पर रहे। गहलोत ने अपने पिछले कार्यकाल में ही छात्रसंघ चुनावों पर रोक लगाई थी, लेकिन सत्ता से बाहर होने के बाद जब छात्रों का विरोध तेज हुआ तो उन्होंने पलटकर समर्थन में बयान दे दिया।
उन्होंने कहा कि अब चुनाव पर लगी रोक हटाई जानी चाहिए। हालांकि जब लोगों ने उन्हें ही चुनाव बंद करने का दोषी ठहराया, तो उन्होंने सफाई दी कि “उस समय की परिस्थितियों को देखते हुए यह निर्णय लेना पड़ा था, लेकिन अब समय बदल गया है और छात्रों को उनके लोकतांत्रिक अधिकार मिलने चाहिए।”
छात्र नेताओं का कहना है कि गहलोत का यह रवैया दोहरा है। जब वे सत्ता में थे, तब उन्होंने छात्रों की आवाज को अनसुना किया और अब सत्ता में नहीं हैं, तो समर्थन की बात कर रहे हैं। इससे छात्रों का यह विश्वास और भी मजबूत हो गया है कि छात्रसंघ चुनावों की बहाली महज एक राजनीतिक मुद्दा बनकर रह गया है, जिसे सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों अपनी सुविधानुसार इस्तेमाल करते हैं।
सरकार की चुप्पी और युवाओं में बढ़ता असंतोष
भाजपा सरकार के मौजूदा कार्यकाल में भी छात्रसंघ चुनावों को लेकर अब तक कोई स्पष्ट दिशा नहीं दिखाई दी है। न तो बहाली की कोई तिथि तय की गई है, न ही छात्रों के साथ संवाद की कोई प्रक्रिया शुरू की गई है। इस चुप्पी को लेकर छात्र संगठनों में असंतोष लगातार बढ़ रहा है।
छात्रों का मानना है कि जब नेताओं के राजनीतिक भविष्य की नींव विश्वविद्यालयों में रखी गई है, तो उन्हीं विश्वविद्यालयों से छात्र राजनीति को प्रतिबंधित करना लोकतंत्र के खिलाफ है। इसीलिए अब छात्र इसे अधिकार की लड़ाई मानकर सामने आ रहे हैं।
कट-आउट्स के जरिये सीधा संदेश
कट-आउट प्रदर्शन का उद्देश्य केवल आलोचना नहीं, बल्कि यह स्मरण कराना भी था कि राजनीति में बैठे नेता भूल न जाएं कि उनका पहला जनादेश इन्हीं विश्वविद्यालयों के छात्रसंघ से मिला था।
यह प्रदर्शन छात्रों का एक प्रतीकात्मक प्रयास था ताकि वे उन नेताओं को आईना दिखा सकें जो अब छात्र हितों को दरकिनार कर चुके हैं। यह भी मांग की गई कि सरकार छात्रसंघ चुनावों की एक स्थायी और पारदर्शी नीति बनाए, जिससे सत्ता परिवर्तन के साथ यह मुद्दा बार-बार राजनीतिक द्वंद्व का शिकार न बने।