कहते हैं इंसान कभी बूढ़ा नहीं होता, अगर उसके सपनों में अब भी ऊर्जा बाकी है। अक्सर लोग उम्र का बहाना बनाकर पढ़ाई या नए कौशल को सीखने की चाह छोड़ देते हैं, लेकिन देश में कुछ ऐसी शख्सियतें हैं जिन्होंने यह साबित कर दिया कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती।
जब अधिकतर लोग रिटायरमेंट के बाद आराम की सोचते हैं, तब इन्होंने किताबें उठाईं और दुनिया को दिखा दिया कि जुनून हो तो उम्र महज एक संख्या रह जाती है। यहां हम आपको ऐसे ही पांच लोगों की प्रेरक कहानियां बता रहे हैं जिन्होंने बुजुर्गावस्था में भी शिक्षा को अपनाकर मिसाल कायम की।
105 की उम्र में परीक्षा पास कर रचा इतिहास
केरल की भागीरथी अम्मा की कहानी न केवल प्रेरणा देती है, बल्कि साहस और समर्पण की मिसाल भी पेश करती है। मात्र 9 वर्ष की उम्र में मां की मृत्यु के बाद उन्होंने अपने छोटे भाई-बहनों की जिम्मेदारी संभाली, जिससे पढ़ाई अधूरी रह गई।
लेकिन उन्होंने कभी अपने सपनों से मुंह नहीं मोड़ा। 105 साल की उम्र में भागीरथी अम्मा ने केरल स्टेट लिटरेसी मिशन के तहत चौथी कक्षा की परीक्षा दी और सफल होकर सबको चौंका दिया।
2019 में उनकी यह उपलब्धि राष्ट्रीय स्तर पर सराही गई और उन्हें भारत सरकार द्वारा ‘नारी शक्ति पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया। उन्होंने यह दिखा दिया कि शिक्षा के प्रति जिज्ञासा उम्र की मोहताज नहीं होती।
96 की उम्र में 98 प्रतिशत अंक लाकर बनीं स्टार स्टूडेंट
कार्तियानी अम्मा की कहानी भी भागीरथी अम्मा से कम प्रेरणादायक नहीं है। केरल के अलप्पुझा की रहने वाली कार्तियानी अम्मा गरीबी के कारण बचपन में पढ़ाई पूरी नहीं कर पाईं, लेकिन पढ़ने का सपना हमेशा जीवित रखा।
उन्होंने 96 साल की उम्र में ‘अक्षरलक्षम’ कार्यक्रम के तहत चौथी कक्षा की परीक्षा दी और 98% अंक प्राप्त कर सबको चौंका दिया। साल 2020 में उन्हें भी नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उनकी सफलता ने यह प्रमाणित कर दिया कि इच्छाशक्ति हो तो कोई भी लक्ष्य असंभव नहीं।
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80 की उम्र में पूरी की एमए की पढ़ाई
राजकुमार वैश्य का सपना था उच्च शिक्षा प्राप्त करना, लेकिन नौकरी और पारिवारिक जिम्मेदारियों के कारण यह सपना अधूरा रह गया। बरेली निवासी वैश्य ने ग्रेजुएशन के बाद झारखंड की एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी की और 1980 में रिटायर हो गए।
रिटायरमेंट के बाद उन्होंने फिर से पढ़ाई शुरू की। 2016 में उन्होंने एलएनएमयू से एमए फर्स्ट ईयर पास किया और 2017 में सेकंड ईयर भी सफलतापूर्वक पूरा किया। उनकी इस उपलब्धि को लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज किया गया। उन्होंने समाज को यह सिखाया कि रिटायरमेंट ज्ञान की यात्रा का अंत नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत हो सकती है।
73 साल की उम्र में स्कूल की बेंच पर लौटे
मिजोरम के लालरिंगथारा को बचपन में पढ़ाई का मौका नहीं मिल पाया। पिता के निधन के बाद उन्होंने महज दूसरी कक्षा तक ही पढ़ाई कर पाई थी। लेकिन पढ़ाई का सपना कभी मरने नहीं दिया।
73 साल की उम्र में उन्होंने न्यू ह्रूयाईकॉन अपर मिडिल स्कूल में दाखिला लिया और वहां से 5वीं तक की पढ़ाई पूरी की। उनकी जिजीविषा और उत्साह ने युवा पीढ़ी को यह सबक दिया कि कभी भी अपनी अधूरी इच्छाओं को त्यागना नहीं चाहिए।
71 में पास किया CA जैसी कठिन परीक्षा
चार्टर्ड अकाउंटेंसी (CA) को देश की सबसे कठिन परीक्षाओं में से एक माना जाता है। लेकिन जयपुर के 71 वर्षीय ताराचंद अग्रवाल ने इस चुनौती को भी स्वीकार कर लिया। स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर से रिटायर होने के बाद वह अपनी पोती को CA की तैयारी कराते हुए खुद भी प्रेरित हो गए।
उन्होंने खुद भी परीक्षा देने की ठानी और लगातार मेहनत कर अंततः सफलता प्राप्त की। उनकी यह सफलता केवल उनके लिए ही नहीं, बल्कि देशभर के उन लाखों लोगों के लिए प्रेरणा है जो यह मानते हैं कि अब उनके सीखने की उम्र निकल चुकी है।
सपनों का कोई रिटायरमेंट नहीं होता
इन सभी कहानियों की खास बात यही है कि इनमें उम्र कभी बाधा नहीं बनी। ये लोग न केवल अपने लिए बल्कि पूरे समाज के लिए आदर्श बन गए। जब किसी व्यक्ति में सीखने की भूख, आत्मविश्वास और मेहनत करने का जज्बा हो, तो कोई भी मुकाम असंभव नहीं रह जाता।
इन लोगों ने यह साबित कर दिया कि उम्र चाहे जो भी हो, सपना देखने और उसे पूरा करने का हक हर किसी का होता है। इन प्रेरक उदाहरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि जिंदगी की किताब कभी बंद नहीं होती—चाहे आप 25 के हों या 105 के। बस पन्ने पलटने का हौसला चाहिए।